वेलेंटाइन डे ढेर सारी हलचल लिये इस बार फिर एक नए रंग में उपस्थित हुआ. हर बार की तरह इस बार भी पक्ष और विपक्ष के ढेर सारी बहसों का साझीदार रहा. इस बार कुछ नया करने का मन बना पक्ष-विपक्ष सबकी एक साथ बैठकर सुनने की योजना बना डाली. योजना तो सही थी लेकिनं इसके लिये बोलने वालों के साथ-साथ सुनने और उचित निष्कर्स निकलने वालों की भी जरुरत थी.
कुछ नया करने से पहले मैंने अनुमति लेना श्रेयष्कर समझा जो कि मुझे आसानी से मिल गई. मुझे कुछ नया करता देख एक Class mate भी साथ हो लिया. सूचना लिखी गई और आवश्यक स्थानों पर लगा दिया गया. मन में ढेर सारी बातें चल रही थी कि क्या होगा?,क्या बोलना होगा?,कैसे क्या करना होगा?. इसी उधेड़ बुन में पूर्व नियोजित समय भी आ गया.जब मै सुनिश्चित स्थान पे पहुंचा तो वंहा किसी को न देख थोड़ा असमंजस में पड़ गया. थोड़ी देर के लिये तो नाराजगी भी हुई कि रूम में बड़ी-बड़ी बातें करने वाले यहाँ आकर क्यों नही बोल रहे. वैसे मेरी नाराजगी बे वजह थी धीरे-धीरे रेलगाड़ी के डिब्बो की तरह जो कि आम भारतीय सोच है एक लम्बी कतार खड़ी हो गई.समय से कार्यक्रम की शुरुआत हुई. विचारों का एक प्रवाह उमड पड़ा.लगभग डेढ़ घंटे चली इस वाद विवाद प्रतियोगिता को मैंने इन वाक्यों में समेटने का प्रयास किया है...........
१) इस दिवस का नामकरण किसी प्रेमी के नाम से नही बल्कि यूनान के किसी संत के नाम पे रखा गया जिन्होंने राजाज्ञा के विरुद्ध किसी प्रेमी युगल कि शादी करा दी.
२) प्रेम विवाह कि प्रथा हमारे देश में गन्धर्व विवाह के नाम से प्राचीन कल से चली आ रही है.
३) वर्तमान समय में हमारे समाज में फैली रुढ़िवादियों के पीछे हमारी प्राचीन संस्कृति नही बल्कि सल्तनत और मुगलकालीन व्यवस्थाएं जिम्मेदार हैं.
४) समाज से किसी बुराई को दूर करने के लिये विचार क्रांति की आवश्यकता है न कि विरोध प्रदर्शन और रैलियों कि
५) अपनी सीमओं और मान्यतावो को ध्यान में रखकर आप सबकुछ करने को स्वतंत्र हैं.
६) हमारे निरंतर उन्नति की तरफ बढ़ते कदम पतंग की तरह हैं जिसे आगे बढ़ने के लिये अनुशासन रूपी धागे की आवश्यकता है.
७) समाज को सभ्यता और संस्कृति का पाठ पढ़ाने वाले लोग इसकी शुरुआत अपने घर से करें.
८) वर्तमान प्रतिस्पर्धात्मक समाज में इमोसन और प्रोफेसन के बीच उचित समन्वय ही हमारा सोसल मैनेजमेंट होगा.
९) प्यार में पागलपन के लिये कोई स्थान नही है.
१०) प्यार और मित्रता करने में जल्दबाजी नही करें और यदि करें तो अंत तक निभाएं.
अंततः वाद विवाद की समाप्ति मैंने इन शब्दों के साथ किया कि "करो चाहो जो लेकिन इस बात का ख्याल रख कि हमारी प्रगति के साथ कोई समझौता न हो"
अंततः यह समस्त घटना क्रम इस पंक्ति को चरितार्थ कर गया कि
(सभी फोटोग्राफ्स मेरे रूम पार्टनर राकेश मीणा के सौजन्य से)
८) वर्तमान प्रतिस्पर्धात्मक समाज में इमोसन और प्रोफेसन के बीच उचित समन्वय ही हमारा सोसल मैनेजमेंट होगा.
९) प्यार में पागलपन के लिये कोई स्थान नही है.
१०) प्यार और मित्रता करने में जल्दबाजी नही करें और यदि करें तो अंत तक निभाएं.
अंततः वाद विवाद की समाप्ति मैंने इन शब्दों के साथ किया कि "करो चाहो जो लेकिन इस बात का ख्याल रख कि हमारी प्रगति के साथ कोई समझौता न हो"
अंततः यह समस्त घटना क्रम इस पंक्ति को चरितार्थ कर गया कि
"मै अकेले ही चला था जानिबे मंजिल मगर
लोग आते गये और कारवां बनता गया"
(सभी फोटोग्राफ्स मेरे रूम पार्टनर राकेश मीणा के सौजन्य से)