Tuesday, June 1, 2010

"हम किस गली जा रहे हैं"

सच कहिये तो ब्लॉग जगत में छुट्टियों का लेखक और पाठक हूँ. कल परीक्षाएँ समाप्त हुईं तो आज कुछ  नया पढ़ने और लिखने के लिये ब्लॉग जगत में उपस्थित हों गया. पिछले दिनों ढ़ेर सारी बातें जो आपतक पहुँचाने का मन बनाया लेकिन मन में ही दबाकर रख लिया. खैर कोई बात नहीं आज उन सबको समेटे यहाँ उपस्थित हों गया हूँ .
संचार के विभिन्न माध्यमों से मुझ तक पहुँचने वाली बातों में से कुछ बातें जो कि मुझे अक्सर परेशान करती हैं या फिर कुछ बातें जिनपर मै अपना स्पष्ट विचार नहीं दे पाता उनपर आज आप सबके विचार जानना चाहूँगा की क्या ये बातें आप सबको नहीं शालती? या फिर क्या आप इन्हें लेकर निरुत्तर से नहीं हों जाते?????
बातें तो वैसे बहुत सारी हैं, लेकिन दस प्रमुख बातें जो आज कल भी चर्चा के विषय हैं वे हैं............
 १. एक राजनेता/राजनेत्री  जो कि अपने आप को जनता का सेवक/सेविका और भी न जाने क्या-क्या बताते/बताती हैं के पास ८७ करोड़ तक की प्रापर्टी कहा से आ जाती? क्या उन्हें उनके जीविकोपार्जन के लिये इतने पैसे मिलते हैं की वे उसमे से इतना बचा पाते हैं???????
या फिर उनके आय का स्रोत व्यवसाय है???????
यदि व्यवसाय उनके आय का स्रोत है तो फिर राजनीति के क्षेत्र में रहकर वे देश सेवा के बजाय व्यवसाय कर रहे हैं या फिर यूँ कहें कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का हिस्सा होकर भी वे अपना शत प्रतिशत इसे नहीं दे रहे?
२. एक नेता जो पिछले ६ सालों में ६ बार इस्तीफा दे चुका जनता उसपर विश्वास कैसे कर लेती है?
३. कल तक वोट बैंक की राजनीति करने वाले जो लोग एक ऐसे संगठन का सपोर्ट  कर रहे थे जो कि आज एक आतंकी संगठन घोषित हो चुका है, तो फिर सरकार उनपर देश द्रोह का मुकदमा चलाकर उन्हें जेल में क्यों नहीं डालती?
या फिर उन्हें फाँसी देने कि बात क्यों नहीं की जाती?
४. जिस एक आतंकी को पकड़ने के लिये कई वीर भारतीय सपूतों ने अपना खून बहाया उसे फाँसी देने के नाम पर राजनीती क्यों की जाती है?
क्या अपने बेटे की जान लेने वाले या फिर अपना खून बहाने वाले के साथ ये लोग ऐसा ही व्यवहार करेंगे??????????
५. यदि कहीं कोई आतंकी विस्फोट हो गया तो फिर उसमें किसी मंत्री का क्या दोष, फिर उसे इस्तीफा देने की सलाह क्या सोचकर दे दी जाती है????????
ऐसी मांग करने वाले क्या खुद ही उस जगह होने पर इस बात का दावा कर सकते हैं की वे वैसा नहीं होने देते?
६. प्रतिदिन पार्टी और विचारधारा बदलने वालों को जनता सबक क्यों नहीं सिखाती????????
इसे रोकने के लिये सख्त कानून क्यों नहीं बनाये जाते????????
७. आरक्षण देकर सरकार क्या एक खास वर्ग या समुदाय को सीधे तौर पर छोटा दिखने का प्रयास नहीं कर रही?
कुछ ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं की जा सकती की वे खुद ही वहाँ  तक पहुचने को तत्पर हों जाएँ????
आरक्षण की समय सीमा क्या होगी????????
क्या कोई सरकार इसे ख़त्म करने को हिम्मत जुटा पायेगी?????????????
यदि नहीं तो फिर हम भविष्य के लिये परेशानियाँ क्यों पाल रहे हैं??????????
आरक्षण की मांग को लेकर जब लोग इस कदर उतारू हैं तो फिर लागू करने से पहले इसे ख़त्म करने के वक्त की स्थिति के बारे में भी तो सोच लें.और फिर यदि आप ये सोचते हैं कि पिछड़ेपन की स्थिति हमेशा बनी रहेगी तो इसका मतलब की आप अपनी नीतियों को सही मायने में लागू करने में नाकाम रहने के बारे में पहले से ही आश्वस्त हैं.
८.नक्सलवाद की समस्या लगातार बढती जा रही है, क्या इसके लिये हमारी गलत नीतियाँ जिम्मेदार नहीं हैं?????????
और यदि हाँ तो फिर ७-८ साल के कार्यकाल को छोड़कर शेष समय सत्ता में रहने वाली कांग्रेस सरकार इसके लिये किसे जिम्मेदार ठहरायेगी????????
९.जातिगत जनगणना क्या हमारे बीच फूट डालने की एक सोची समझी साजिश नहीं है?????????
यदि नहीं तो फिर ऐसा कर के सरकार क्या हासिल कर लेना चाहती है??????????
जातिगत राजनीति या फिर कुछ और?????????
१०. आज से महज पाँच साल पहले की बात है कि अटल बिहारी वाजपेयी जी को सुनने के लिये मैंने मई के महीने में तीन घंटे तक धूप में खड़ा रहा लेकिन आज स्थिति ये है कि कुछ एक को छोड़ दें तो सुनने जाना भी पसंद न करूँगा,ऐसी स्थिति के लिये जिम्मेदार कौन है ???????????

राजनीति और राजनितिक बातों से ज्यादा ताल्लुक नहीं रखता लेकिन आज की पोस्ट तो पूरी राजनितिक हो गई. खैर मेरी अंतराभिव्यक्ति जो थी जैसे भी थी वो अब आपके सामने है. कहिये आप क्या कहना चाहेंगे ????????????????????
धन्यवाद!!! 

6 comments:

Rakyesh Meena said...

very nice......bilkul yahi haal hai indian politices ka..

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

दस सवालों के दस जवाब, क्रम से:
१.ऐसे कितने सत्तासी करोड़ के मालिक कई राजनेता हैं। अन्तर सिर्फ़ यह है कि वे अपने मुँह से कुछ नहीं बताते। जब छापे में पकड़े जाते हैं तब पता चलता है। आप जिनकी बात कर रहे हैं उन्हें अपने आप बताने में और कुछ भी करने में शर्म नहीं आती इसलिए सबकुछ डंके की चोट पर होता है।

२.वोट डालने से पहले यदि जनता यह सब सोचने लगे तो पर्ची हाथ में लेकर वापस आ जाएगी। पूरी लिस्ट में वही नाम होते हैं- नागनाथ, साँपनाथ, करैत लाल, धामिन बाई, कोबरा राम, अजगर प्रसाद आदि आदि। आप जैसे सोचने वाले वोट ही कहाँ डाल पाते हैं?

३. वोट बैंक की राजनीति करने वालों को आप सरकार से भिन्न और अलग मान रहे हैं? बड़े भोले हो भाई। अरे, सब एक ही थैली के चट्टे बट्टॆ हैं।

४.कमाल है, उत्तर पहले देते हो और सवाल बाद में पूछते हो? तीसरे विन्दु में आपने खुद ही उत्तर दे दिया है- वोट बैंक की राजनीति। फाँसी से मुल्ला समुदाय रूठ गया तो...???

५.आतंकी विस्फोट होने पर कुछ रस्में निभानी पड़ती हैं। सत्ता पक्ष मारे गये लोगों को कुछ लाख रूपये और हादसे में घायल लोगों को कुछ हजार की सहायत देता है, मृतक आश्रितों को सरकारी नौकरी देने की घोषणा की जाती है, पार्टी के बड़े नेता और मन्त्री घटना स्थल पर पहुँचते हैं, अफ़सोस और दुख प्रकट किया जाता है, देश के दुशम्नों और विरोधियों के साथ कड़ाई से पेश आने और मुँहतोड़ जवाब देने की बात दुहरायी जाती है, आदि-आदि। विपक्ष के पास कुछ और नहीं तो मन्त्री का इस्तीफा मांग लेने का जिम्मा होता है। इन परम्पराओं का निर्वाह न करें तो जनता गाली न देगी? इसे सीरियसली लेने की कौनो जरूरत नाहीं है।

६. हमारा देश लोकतांत्रिक देश है। सबको अपनी विचारधारा रखने और उसे कपड़े की तरह बदलने की स्वतंत्रता है। आपको इस आजादी का सम्मान करना चाहिए। परिवर्तन तो संसार का नियम है। कुछ भी स्थायी नहीं है यहाँ केवल ‘ब्रह्म’ को छोड़कर। सख्त कानून बनाकर इस आजादी पर रोक लगाना घोर अलोकतांत्रिक कदम होगा।:)

७.आरक्षण की मलाई चखाने के बाद आप उसे खींच लेना चाहते हैं? घोर अनर्थ...। जो सरकार इसे हटाने को सोचेगी वह अगले चुनाव में खुद ही हट जाएगी और जो नई सरकार चुनकर आएगी वह सबसे पहले यही आरक्षण लगाएगी। अब तो यह आरक्षण का फन्दा कटने वाला नहीं है। देश की प्रतिभाओं का गला घोंटने की पूरी मुकम्मल तैयारी है।

८.कांग्रेस इस पचड़े में नहीं पड़ती कि कौन जिम्मेदार है। वह तो ‘राज करना’ जानती है। जो खाली बैठे जुगाली कर रहे हैं वे बतकही करते रहें कि कौन जिम्मेदार है। नक्सली समस्या से सबको नुकसान ही थोड़े न है। बहुत से लोग इससे लाभान्वित हैं। आप को देखा नहीं जाता तो अपनी राह पकड़िए।

९.जाति की जानकारी किए बिना आप किसी को पानी भी पूछते हैं? नाम पूछने पर यदि कोई अपनी जाति न बताये तो मन में कसमसाहट होने लगती है। किसी की औकात जानने के लिए जाति जानना लोग जरूरी समझते हैं। अब यदि सरकार यही पूछकर आपका काम आसान कर दे रही है तो आपको क्या परेशानी है? कचहरी से जाति प्रमाणपत्र बनवाने का विरोध किया आपने? इस जाति को नकारने की बात केवल सपनीली दुनिया में जीने वाले सोच सकते हैं। दिवास्वप्न से बाहर आने की जरूरत है।

१०. बावले हो गये हो क्या भाई? नेता का भाषण क्या टीवी में नहीं आता? तीन घण्टे धूप में खड़े होने को बेताब हो? किस पुराने जमाने के जीव हो जी? इनकी चख-चख तो रोज मुफ़्त में सुनने को मिलती है, वह भी बिना पसीना बहाए। घर में बैठे हुए, चाय की चुस्की के साथ मुफ़्त का नमकीन टीवी पर...।

मस्त रहो जी... बिन्दास लिखते हो, लिखते रहो। स्नेह!

sarvesh said...

hello pawan ji ,
Aap ki bat to puri sahi hai, parantu isko sochane se humlog khud demolise ho jayenge kyuki ye apna trade nahi hai..
ayr rahi rajnaitak vishiyon ki bat to vo kab sahi pata nahi par shi jarur hogi ek din ye vishwas hai mujhe india pe......../
vaise bhi indian dharm ke hishab se kalyug chal raha hai itna sab to laga rahega. ye general bat hai aam log kya........
vaise tumne acha prasn pucha tha iska uttar bhi tumhe mil chuka hai shidharth bhaiya ne de diya hai..
i hope tum santust ho gaye hoge.....
buy.......
waiting next post....

sarvesh said...
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sarvesh said...
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संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब, लाजबाब !