Saturday, April 23, 2011

"जिम्मेदारियों का समुचित निर्वाह करे मीडिया"


कारण चाहे जो भी कहें जैसे देश और समाज के बारे में जानने की इच्छा या फिर व्यक्तिगत जानकारी बढ़ाने की इच्छा,दैनिक समाचार पत्रों पर एक नजर दौड़ा लेने की बहुत पुरानी आदत है. पिछले दिनों अन्ना हजारे और उनके समर्थित लोगों की सफलता से बहुत खुश हुआ. पढ़कर,सुनकर ऐसा लगा की जनतंत्र ने वास्तविक अर्थों में खुद को परिभाषित कर दिया. निःसंदेह इन लोगों को पूरे देश का समर्थन मिला. पर आज कल इन बातों को ले कर जो हो हल्ला मचा हुआ है उसे पढ़कर और सुनकर थोड़ी निराशा होती है.
जन लोकपाल विधेयक के समर्थन में सामने आये लोगों पर बेशर्मी से कीचड़ उछालने की प्रक्रिया चल रही है. कभी परिवार ,कभी संपत्ति,कभी उनके पिछले दिनों का इतिहास और फिर हद तो तब हो गई जब उनकी जाति को लेकर भी सवाल उठाये जाने लगे. ये लोग जाति,धर्म,संप्रदाय से ऊपर उठकर देश हित की बात कर रहे हैं,ऐसे में कुछ इस तरह की बात करना मेरी समझ से परे है. राजनीतिक पार्टियों ने अपने में से कुछ लोगों के इनके टांग खिचाई का जिम्मा भी दे रखा है और वे भी बेशर्मी की हद पार कर ऐसा करने में लगे हुए हैं. इनमे से कुछ लोग ये आरोप लगा रहे हैं कि अमुक व्यक्ति भ्रष्टाचार पर नियंत्रण कर पाने में अक्षम रहा. देश की सर्वोच्च संस्था के इन सदस्य महोदय से मै ये पूछना चाहूँगा की इन्होने इसे रोकने के लिए क्या किया? बल्कि ये जानकर ज्यादा ख़ुशी होती कि ईमानदारी पूर्वक यह बताते कि खुद ही कितनी बार कुछ ऐसी गतिविधियों में संलिप्त रहे हैं? अभी किसी ने यह कह दिया कि इस समिति में दलित वर्ग का कोई प्रतिनिधि नहीं है. जाहिर सी बात है कल को मुसलमानों के कथित शुभचिंतक भी कुछ ऐसी मांग करने लगेंगे. मैंने कथित शुभचिंतक शब्द इस लिए प्रयोग किया की मेरे विचार से कुछ ऐसी मांग करने वाले वोट बैंक के चिन्तक तो हो सकते है लेकिन समाज,समुदाय और देश के शुभचिंतक कभी नहीं हो सकते. मै इन महोदया से पूछना चाहूँगा की यदि इन्हें  समिति के सदस्य के चयन का मौक़ा दिया जाय और फिर हिन्दू,मुसलमान,सिख,इसाई,जैन,बौद्ध इत्यादि सभी वर्गों के लोगों को शामिल करने की बात की जाय तो ये क्या करेंगी? जो तर्क ये दलित संप्रदाय के लिए दे रही हैं वो इनलोगों के लिए भी दिये जा सकते हैं. इन लोगों के बीच भी गरीब,भूखे,बेरोजगार और बीमार लोग हैं. ऐसे में उनका क्या होगा? क्षमता और आवश्यकता से परे आरक्षण के नाम पर ऐसा कुछ करना क्या देश के हित में होगा? आरक्षण एक बैसाखी की तरह है जो कि अच्छे भले लोगों की कमर तोड़कर उन्हें थमा दी जाती है. मजे की बात ये है कि लोग ऐसा कुछ होने के बावजूद खुश हैं और इसके लिए मरने मारने पर उतारू हैं. एक बात तो मेरी समझ से परे है कि अपने आप को दीन-हीन और कमजोर कहलवाकर ये लोग खुश कैसे हो लेते हैं?
बात यही ख़त्म नहीं होती मीडिया भी इसमें भरपूर सहयोग कर रही है. समाचारपत्रों में इन क्षुद्र राजनेताओं के उलजलूल  टिप्पड़ियों को जितनी प्रमुखता से प्रकाशित किया जाता है उतनी प्रमुखता से प्रकाशित करने के लिए और भी बहुत सारे मुद्दे हैं. शांति भूषण की जमीन से सम्बंधित जिन बातों को लेकर पिछले दिनों सारे समाचार पत्र रंगे रहे क्या इस तरह की कुछ बातें हमारे राजनेताओं के संबध में प्रकाश में नहीं आती यदि हाँ तो फिर उन्हें भी इतनी ही प्रमुखता से प्रकाशित करना चाहिए. भ्रष्टाचार को लेकर यदि ये लोग इतने ही सजग है तो फिर क्या ये बताना चाहेंगे कि 
-महाराष्ट्र में जिस अधिकारी को भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने पर जिन्दा जला दिया गया उसे कहाँ तक न्याय मिल सका या फिर कबतक न्याय मिलेगा?
-बिहार के एक ईमानदार इंजीनियर  सत्येन्द्र दुबे हत्याकांड से जुडी जांच पड़ताल में क्या प्रगति है?
-कृष्णैया हत्याकांड से जुड़े लोगों को कबतक दंड मिल सकेगा?
-देश और समाज को बाँटने वाले जो बयान आये दीन दिए जा रहे हैं उनकी खुली आलोचना क्यों नहीं की जा रही?
-समिति के सदस्यों के बारे में जो लोग नित नये आरोप लगा रहे हैं उनके बारे में भी ऐसी बहुत सारी बातें संज्ञान में होंगी फिर उन्हें भी साथ में प्रमुखता से प्रकाशित किया जाय?
बातें और भी बहुत सारी हैं. मुझे बस इतनी सी बात कहनी है कि मीडिया भाड़े के टट्टुओं का सा वर्ताव छोड़कर निष्पक्ष बने,परिस्थितियों और आवश्यकताओं को समझे,देश और समाज को आगे बढ़ाने और समृद्ध करने वाले मुद्दे प्रकाश में आये साथ ही इसके विरोधियों की खुली आलोचना हो. 
आज के लिए बस इतना ही....
धन्यवाद"

3 comments:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

बहुत ही अच्छा और प्रशंसनीय आलेख। यह सम-सामयिक मुद्दों के प्रति आपकी गहरी संवेदना और समझ को दर्शाता है। आपने अपनी बातें बहुत तार्किक रूप से रखी हैं। बधाई।

आलेख में वर्तनी और व्याकरण संबंधी कुछ अशुद्धियाँ रह गयी हैं। इनकी ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना आवश्यक समझ रहा हूँ। यहाँ इनका होना किसी अच्छे व्यंजन का स्वाद लेते समय दाँतों के बीच अचानक आ जाने वाले कंकड़ की तरह है जो मुँह का स्वाद खराब कर देता है।

(सस्नेह)

मेरे समझ = मेरी समझ
राजनितिक = राजनीतिक
देश के सर्वोच्च संस्था = देश की सर्वोच्च संस्था
इमानदारी = ईमानदारी
छुद्र = क्षुद्र
उलजुलूल = ऊलजलूल
शांति भूषण के जमीन = शांति भूषण की जमीन
ये लोग इतने ही सजग है = ये लोग इतने ही सजग हैं
इंजिनियर = इंजीनियर
से जुड़े जांच पड़ताल = से जुड़ी जांच-पड़ताल
बांटने = बाँटने
नए = नये
नीस्पक्ष = निष्पक्ष

Harshkant tripathi"Pawan" said...

पोस्ट में जिन अशुद्धियों की बात आपने की थी उनमे सुधार कर दिया है. मुझे ख़ुशी है कि आपने पोस्ट को इतनी सूक्षमता के साथ पढ़ा और मुझे अशुद्धियों से इतने अच्छे तरीके से अवगत कराया. मेरी पूरी कोशीस होगी की आने वाली पोस्टों में कुछ इस प्रकार की अशुधियां न हो और यदि हो भी जाती हैं तो आपसे कुछ ऐसे ही स्नेह का उम्मीद करूँगा....

sarvesh said...

badhiya hai....... bhaiya ne jab sari bate bata di hai to phir mai kya bolo.............
post vakai me achha tha.