पीछले कुछ दिनों से कुछ तो समयाभाव और कुछ खुद के आलस्य वश ब्लॉग पे कुछ नया पोस्ट करने में अक्षम रहा हूँ| वैसे आज फिर पूरे जोश के साथ उपस्थितं हूँ आपके समक्ष एक नए पोस्ट के साथ.
कहा गया है कि जीतते वही हैं जो सामान्य से कुछ अलग करते हैं. सामान्य से कुछ अलग सोच रखते हैं. कुछ ऐसे ही बातों से प्रेरित हो के.आई .टी छात्रावास में प्रति वर्ष उमंग (छात्रावासीय खेल प्रतियोगिता) का आयोजन किया जाता है,जहाँ विशेषकर फ्रेशर्स को अपनी क्षमता दिखाने का मौका मिलता है.
आज उमंग २००९ का शुभारंभ हुआ . प्रतियोगिता कि शुरुआत आज एक क्रिकेट मैच से हुई जो कि काफी रोमांचक रहा. उमंग की समाप्ति २९-११-२००९ को नियोजित है. विस्तृत सूचना और फोटोग्राफ्स अगली पोस्ट में.
Motive behind the creation of this blog is reporting of functions organised in KIT and to bring forward the creative ideas and thoughts.
Friday, November 27, 2009
Friday, November 13, 2009
"माँ कौन करेगा तुझसा प्यार"
पिछले मदर्स डे (10 may) को मैंने अपने माँ को कुछ ऐसे याद किया...............................
"माँ कौन करेगा तुझसा प्यार"
तुमसे था मेरा प्रथम मिलन
था तुमसे ही पहला साक्षात्कार
पाला पोशा और बड़ा किया
फिर दिया मुझे है यह आकर
कैसे मै तुमसे मुहं मोडूं
और तज दूँ मै तेरा संसार
माँ कौन .....................
मेरे बचपन कि वो बातें
तुमसे बिछडन कि वो रातें
जब रख तकिये के नीचे सर
सो जाता था रोते रोते
तब दूरी और रुलाती थी
जब न थी चिठ्ठी न था तार
माँ कौन..............
तुमसे दूर जाने का गम
जल्दी लौट नही पाने का गम
लिख कर के पन्नो पर
वो घंटों घंटों का करना कम
माँ वो सब मेरा पागलपन था
या उसके पीछे था तेरा प्यार
माँ कौन.............
बिना अन्न और पानी के
मेरे खातिर तू व्रत रखती
दिल में दबा कष्टों को अपने
मुझसे हँस-हँस बातें करती
गढा गया नही अबतक पैमाना
जो माप सकेगा तेरा प्यार
माँ कौन...............
यदि आह शब्द निकला मुहँ से
आँखे तेरी भर जाती हैं
मेरे कष्टों को कम करने को
माँ कितना कष्ट उठाती है
फिरा के सर पे तू ऊँगली
कर देती मुझमे ऊर्जा संचार
माँ कौन ...............
जब भी कोई सपना टूटा
जब भी कोई अपना रूठा
जब भी कोई अपना रूठा
जब छोड़ गया इस जग से कोई
जब लगा कि सर पे कोई तारा टूटा
माँ तेरे आँचल के नीचे
देखा था मैंने जीवन सार
माँ कौन.............
पाने के लिये माँ तेरा प्यार
तज दूंगा मै सारा संसार
माँ तू न रही यदि इस जग में
फिर कौन करेगा तुझसा प्यार
माँ कौन करेगा तुझसा प्यार.
धन्यवाद:
Thursday, November 12, 2009
मैंने सोचा:
कविता के लिए:
कविता जो रोकती है
अंतरतम के तुफानो को
सोखती है,उफानों को
ला देती है
अनंत से खीचकर
एक बिंदू पर
जहा होते हैं
शांति सपने और विश्वाश
शायद अनंत काल तक
उकेरा जाता रहेगा
आवेगों को अक्षरों में
कुछ यू हीं
और फिर कुछ ऐसे ही
बनती रहेगी,सजती रहेगी
सृजती रहेगी "कविता"
"दो शब्द कि बस चाह है,दो शब्द से ही आह है,
दो शब्द कि व्युत्पति ही किसी काव्य का प्रवाह है"
कवि के लिए:
भावुक होता है कवि ह्रदय , जल्दी भावों में बह लेता,
सच कहता हूँ विश्वाश करो,इसलिए वो कविता गह लेता.
(दरअसल कविता,कहानियां इत्यादि चीजें हमारे प्रोफेशन से कुछ मेल नही खातीं . यही कारण है कि मुझसे ऐसे सवाल अक्सर किये जाते हैं कि: कैसे लिखते हो? लिखने का मूड कैसे बनाते हो? या फिर मूड कैसे बन जाता है?. बस कुछ ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर ढूंढ़ते- ढूंढ़ते मैंने ये सब लिख डाला. क्यों कैसा लगा पढ़कर)
धन्यवाद : Monday, November 9, 2009
Together we can enable the disable
भारतीय चिकित्सा संस्थान द्वारा आयोजित सेमिनार (With moto में: Together we can enable the disable) शामिल होने के निमंत्रण की सूचना मुझे शुक्रवार को प्राप्त हुई. फिर तो उसके लिये तैयारी शुरू हुई. कुछ विशेष सक्रिय लोगों को इसकी जानकारी दी गई ताकि बात सबतक पहुँच सके और कल को कोई ये न कहे की मुझे तो इस बात का पता ही नहीं चला सका .
छुट्टी का दिन ढेर सारे कामों को न्योता दिए आता है जैसे होम वर्क करना,मूवी देखना,पुरे सप्ताह की नींद पूरी करना. ऐसे में कार्यक्रम जो की छुट्टी के दिन था को सफल बनाने के लिये थोड़े परिश्रम की जरुरत थी. फिर क्या था एक दिन पहले ही जाने वालो की लिस्ट बना ली गई, पोस्टर्स तैयार कर लिये गए. फिर कल का दिन भी आ गया जिस दिन हमलोगों को सेमिनार में जाना था.
जब से यहाँ हॉस्टल में हूँ रविवार को फ्रेश होने के बाद कैम्पस में थोडी देर तक टहलने की आदत है. कल जब कुछ तो टहलने के मूड से और कुछ ये जानने के मूड से की लगभग कितने लोग जाने के मूड में हैं निचे आया तो कानाफूसी के बिच से उठे एक सवाल ने मुझे स्तब्ध कर दिया......
आज तो मूवी देखने जाना है , और फिर लैंडमार्क में लंच है !
मैंने पूछा तुम्हे किसने बताया ?
सर वो कल्चरल वाले पवन सर ने?
मै तो कुछ और भी परेशान हो गया! अरे यार पवन सर तो मै ही हूँ लेकिन मैंने तो ऐसा कुछ नहीं कहा? वैसे तुम्हे किसने बताया ?
सर अमरनाथ ने.
ये अमरनाथ कौन है? मैंने उसे बुलवाया. क्यों भई मैंने तुम से कब कहा कि...........
सर वो ये लोग जाने को तैयार नही होते सो मैंने ऐसा कह दिया.....सर .........
ठीक है कोई बात नहीं. (मेरे चेहरे पर हर्ष और विष्मय दोनों का चिन्ह एक साथ देखा जा सकता था).
वैसे मैंने यथा स्थिति से उन लोगों को अवगत कराकर अपने रूम में चला गया. पूर्व नियोजित समय के अनुसार बस के.आई.टी. से एस.के.एस सर,पी.के.मिश्रा सर और हम ६२ स्टूडेंट्स के साथ रवाना हुई. गेट से निकलते ही तरह -तरह के जय घोशों से वातावरण गुंजायमान होने लगा. वहा कार्यक्रम शुरू होने से कुछ देर पहले ही हम लोग पहुँच गए और फिर यथोचित स्थान पर बैठ क्रायक्रम के शुरू होने का इंतजार करने लगे. वैसे इंतजार की घड़ियां कम ही थी और मुख्य अतिथि शहर के सांसद प्रकाश जायसवाल सही समय पर उपस्थित हो गए. पारंपरिक विधि के अनुसार दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की गई. स्वयं प्रकाश जायसवाल ,सलिल विष्नोई,पंकज कपूर,सुन्दरम भार्गव,अनिल वर्मा (हमारे कॉलेज के संस्थापकों में से एक ,जिनकी वहाँ उपस्थिति ही हमारे उपस्थिति का कारण बनी) आदि ने अपने सुझाव परक और बहुमूल्य विचारों से सबको संबोधित किया. यहाँ विकलांग लोगों के लिये बनी एक खास साईकिल का प्रदर्शन भी किया गया. डी.पी.एस के एक विकलांग छात्र द्वारा म्यूजिक सिस्टम पर प्रस्तुत किया गये गाने (ऐसी शक्ति हमें देना दाता,मन का विश्वाश कमजोर हो न...........)ने वहा उपस्थित लोगों के बीच आत्म चिंतन की मनः स्थिति उत्पन्न कर गया. अंततः सेमिनार ने यहाँ उपस्थित लोगों तक अपना मोटो Togethar we can enable the disable को पहुँचाने में सफल रहा. अब समय रैली का था. रैली के बाद रिफ्रेशमेंट की व्यवस्था थी. पुनः हम लोग बस में सवार हुए और वापस कॉलेज आ गए.(सेमिनार से सम्बंधित photos अभी अपडेट नहीं कर पा रहा, वैसे इसे जल्द से जल्द अपडेट करने का प्रयास करूँगा)
धन्यवाद.Wednesday, November 4, 2009
"कोई ज्ञानी मुझे भी बना ही दे "
पहली पोस्ट , एक नया परिचय , एक नई शुरुआत...............................
इस समय मेरे दिलो दिमाग में चल रहे हलचल के लिये पर्याप्त कारण है|
क्या लिखू? कैसे लिखू? कहाँ से शुरुआत करूँ?
वैसे ज्यादा माथापच्ची करने से अच्छा है कि के.आई.टी के अपने उस पहले अनुभव और उससे उपजी मानसिक हलचल जिसे कि मैंने शब्दों का रूप दिया, आज यहाँ पहली पोस्ट के रूप में ठेल रहा हूँ|
"कोई ज्ञानी मुझे भी बना ही दे "
भई प्यार में कुछ कुछ होता है
कुछ ऐसा- वैसा होता है
पर क्यों आखिर ये होता है
कोई तो मुझे भी बता ही दे
कभी दर्द भरी अहसासों का
मोबाइल पर घंटो बातों का
मौके बेमौके अक्सर
हर्षित मुखरित अल्फाजों का
आखिर कोई कारण तो होगा
कभी आँखों में आंसू सूख जाने का
कभी गंगा यमुना बह जाने का
कभी दर्द नहीं सह पाने का
कभी लम्बी बात बनाने का
आखिर कोई कारण तो होगा
पर्याप्त है पारो का नाम
कानो के खड़े हो जाने का
बस याद किये जाने पर ही
पारो की काल आ जाने का
मीलों दूर बैठे- बैठे
दिल की धड़कन सुन पाने का
पारो से नजरें मिलते ही
धीरे धीरे मुस्कुराने का
आखिर कोई कारण तो होगा
हर गाना अपना लगने का
हर पंक्ति प्यारी लगने की
बिन पारो को याद किये
एक पल भी चैन न पड़ने की
आखिर कोई कारण तो होगा
सानिन्ध्य नहीं जब पाने का
पारो पारो चिल्लाने का
सौ- सौ कारण गिनवाने का
उसको भूल न पाने का
पर सुन पापा के फ़ोन की घंटी
सारी हेकडी गुम हो जाने का
पापा को नहीं बताने का
और मम्मी को समझाने का
आखिर कोई कारण तो होगा
कोई तो मुझे भी बता ही दे
या प्यार मुझे भी करवा दे
कबतक अज्ञानी बना रहूँ
कोई ज्ञानी मुझे भी बना ही दे
भई प्यार में कुछ -कुछ होता है ..........................
(बात उन दिनों की है जब मै के.आई.टी परिसर में नवागंतुक था, उस समय यहाँ उपस्थित अपने साथियों और सीनियरों का देर रात तक फ़ोन पर बात करना मुझे थोडा नागवार गुजरता था. आपने उस समय के मेरे फीलिंग्स को पढ़ा भी अब यदि कुछ अच्छा लगा हो तो कमेंटिया दीजिये) .
धन्यवाद्
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