पहले की तरह इस बार भी परीक्षायें खत्म हुई तो ब्लागिंग का शौक पूरा करने ब्लाग जगत में पहुँच गया। हाल मे ही खत्म हुए दशहरा पूजा के अलावा कालेज मे नवागन्तुकों के स्वागत मे आयोजित उदभव से जुडी यादें भी अभी यथावत बनी हुई हैं, जिन्हे की आप सब तक पहुँचा सकता हूँ । लेकिन आज कुछ ही दिन पहले की अपने यात्रा से जुडी कुछ यादों के साथ-साथ उपरोक्त कार्यक्रमों की तस्वीरें पोस्ट करने का मन पह्ले से ही बनाये बैठा हूँ । और फ़िर तस्वीरे भी तो बोलती है? अतः कार्यक्रमों की जानकारी उन्ही से ले लीजियेगा.
हुआ यूँ कि दशहरे और दीपावली मे घर न जा पाने की स्थिति को पहले ही भाँपते हुए मैं मौके से मिली दो छुट्टीयों और रविवार महोदय की असीम अनुकम्पा को देखते हुए नवरात्रि के प्रारंभ मे ही घर जाने का मन बना डाला, ट्रेन मे सीट भी आरक्षित कर ली गई। आदत से मजबूर मै निश्चित समय से दो घन्टे पहले ही यह सोचकर छात्रावास से निकल लिया ताकि निर्धारीत समय से थोडा पहले ही स्टेशन पहुच सकूँ। समय से मिल गई आटो ने लगभग आधे घन्टे मे ही स्टे्शन पहुंचा दिया। अब शुरु हुआ इन्तजार का सिलसिला। जब निर्धारित समय के एक घन्टे बाद तक ट्रेन नही आई तो मैं कुछ दोस्त मित्रों और करीबियों को फ़ोन कर भारतीय रेल के महान परंपरा का गुणगान प्रारंभ किया और उनसे सहानुभूति लेने लगा। किसी की सहानुभूति काम आई और लगभग दो घन्टे की देरी से ट्रेन ने दस्तक दी। कुल मिलाकर लगभग चार घन्टे तक स्टे्शन पर बिताने के बाद ट्रेन के आने की खुशी मेरे चेहरे पे देखी जा सकती थी। आनन-फ़ानन में ट्रेन में सवार हो अपनी निर्धारित सीट पर पसर गया।
अब मुद्दे की बात, की यात्रा खास क्यों थी? यात्रा के दौरान क्या करना है? और क्या नही? से संबंधित ढेर सारे टिप्स मिलते रहे हैं | जैसे क्या खाना है? क्या नहीं, किससे बात करनी है? किससे नही, कैसे उतरना?, कैसे चढना? और तो और किसे देखना और किसे नही? सबकुछ ध्यान मे रखते हुए मैने बैग से हेडफ़ोन निकला, एक हिस्सा मोबाइल महाराज की शरण मे दे दूसरे हिस्से को कान मे लगा देश दुनिया से बेखबर हो जाने का प्रयास करने लगा।
गाने बदल रहे हैं, सामने की बर्थ पर लगभग एक पांच वर्षीय लड़की उम्र मे अपने से दो-तीन साल बडे भाई से नोंक-झोंक कर रही है…….
-पर मुझे क्या करना है? गाना बदल दिया.......
-कुछ अनसुना सा लग रहा है, शायद किसी नई फ़िल्म का है!
-अच्छा नही लग रहा!!!!!!!!!
-इसे भी बदलते है, हां अब अच्छा है।
-लड़की भाई से उलझना छोड बर्थ के बीच मे बैठ गई है, शायद मेरी तरफ़ देख रही है@
-पर मुझे क्या? मै क्यों देखने जाऊ? पता नही किसको आपत्ति हो जाये ?(वैसे भी लोग आजकल जाने कब? किस बात पे? कैसे और क्यों? बिना कुछ सोचे नाराज हो जाएँ )
-वो अब भी देख रही है………
-कोई दिक्कत तो नही? कुछ कह तो नही रही? (गाने पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पा रहा हूँ)
-वो अब भी इधर ही……………………….
-छोडो जाने दो, जिसको जो सोचना हो सोचे, शायद कुछ पूछ्ना या बताना चाह्ती है…..
-एक लम्बी सी मुस्कान, ऐसा लग रहा जाने कितना पुराना परिचय हो...
-गाने सुन रहे हैं क्या ?
-हाँ , तुम्हे भी सुनना है ?
इधर-उधर देखकर कोई उत्तर नही, मैने फोन से हेडफ़ोन निकाला और आवाज थोडी तेज कर दी। वो बहुत खुश है, बार-बार चेहरे की तरफ़ देखती है और मुस्कराती है | मै भी उसके कुछ उलजलूल बातों का ढुलमुल उत्तर दीये जा रहा हूँ |
-आपको नींद नही आ रही ? अब मै सोने जा रही हूँ|
समझ नही पाया की बता रही है ? या फ़िर पूछ रही है !
मैंने भी मौन स्वीकृति में सर हिला मुस्करा कर सो जाने का इशारा किया। जानने की उत्सुकता हुई क्या वास्तव मे सो गई ? जवाब हां था। यात्रा के दौरान सोने की आदत वैसे भी नही है। मैने बैग से डायरी और कलम निकला और जो भाव आते गये पन्नों पर उकेरता चला गया, कुछ ऐसे…
सोचता हू,
तुम्हारे इस मासूम और निश्छल हँसी का राज
लगता है,
उम्र छोटी है तेरी
तू अनजान है दुनिया के नीतियों से
दुनियादारी और ऊंची-नीची बातों से
नही जानती हो छ्ल कपट की दुनिया को।
कल जब तुम हो जाओगी बड़ी
छीन ली जायेगी तुम्हारी
कुछ इस तरह की निश्छल हँसी
भर दी जायेंगी ढेर सारी उल्टी-सीधी बातें
तुम्हारे दिमाग मे
निश्चय ही दी जायेंगी कुछ ठोकरें
जो तुम्हे बना देंगी कठोर
रोकेंगी कुछ ऐसा कर पाने से।
हिम्मत भी करोगी कुछ ऐसा करने को
पर रहेंगी चिन्तायें तेरे मष्तिक मे की
कही कुछ ऐसा न हो?
कही कुछ वैसा न हो?
है मुझे पता की समय साथ छीन जायेगा तेरा ये भोलापन
पर सौ बार ये मन्न्त करता हू कि खुदा बचाये तेरा बचपन।
पोस्ट बहुत बडी हो गई। यह यात्रा इसलिये भी यादगार है कि अबतक के जीवन मे पहली बार स्टेशन पे दस मिनट पहले पहुंचा। यदि थोडी जल्दीबाजी नही की होती तो अगले स्टेशन पर उतरना पड्ता|
धन्यवाद"
Motive behind the creation of this blog is reporting of functions organised in KIT and to bring forward the creative ideas and thoughts.
Saturday, October 23, 2010
Tuesday, September 14, 2010
"हम हिन्दी दिवस मना रहे हैं"
कोई भी दिवस मनाने का मुझे बस एक लाभ समझ में आता है कि वह दिवस जिससे सम्बंधित होता है, हम उसे भूल नहीं पाते हैं. शायद इसके और भी बहुत सारे लाभ होते हों और उपरोक्त बात मेरी अपनी व्यक्तिगत सोच को दर्शाती हो लेकिन एक बात जरुर कहना चाहूँगा की हिन्दी दिवस मनाने की बात मुझे अक्सर खटकते रहती है. मेरे विचार से हिन्दी जो कि मात्र एक भाषा नहीं बल्कि राष्ट्र भाषा है उसे भूल जाने या फिर उसे याद करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता ? अपनी कुछ इन्ही बातों को दर्शाने के उद्देश्य से मैंने आज कुछ ऐसा लिखा.......
१.हिन्दी पैसा बनाने का माध्यम है लेकिन आम जनसंपर्क का माध्यम क्यों नहीं ?
२. जब इसे राष्ट्र भाषा घोषित किया गया है तो फिर सम्पूर्ण राष्ट्र के लिये एक अनिवार्य भाषा क्यों नहीं ?
३. राष्ट्र भाषा के नाम पर ओछिं राजनीति क्यों और फिर ऐसा करने वालों के विरुद्ध सख्त कानून क्यों नहीं?
सीधे तौर पर यह बात कहने से परहेज करता हूँ कि हिन्दी का विकास नहीं हुआ या फिर इसका विकास नहीं हो रहा लेकिन जब यथोचित विकास की बात करें तो फिर इसे सहर्ष स्वीकार करना होगा की इसे वो स्थान अबतक नहीं मिल सका है जो इसे मिलना चाहिए. बातें अभी और भी हैं लेकिन आज के लिये बस इतना ही.
(सभी फोटोग्राफ्स गूगल सर्च इंजन से साभार)
हम हिन्दी दिवस मना रहे हैं
शायद कोई गुन्जाईस है भूल जाने की इसे
इसलिए इसे याद कर हम मानस पटल पर ला रहे हैं
हम हिन्दी दिवस मना रहे हैं |
जो हिन्दी सम्पूर्ण भारत के राज-काज और समाज की भाषा होना चाहिए उसके समृद्धि के लिये हम आज हिन्दी दिवस मना रहे हैं. जिस हिन्दी को प्रत्येक भारतीय को एक दुसरे से जोड़ने का माध्यम होना चाहिए, जो हिंदुस्तान की धड़कन होनी चाहिए उसके समृद्धि के लिये सेमिनार और गोष्ठियां आयोजित की जा रही हैं. अपनी संस्कृति और अपने भाषा के सहारे आज अमेरिका,जापान,चीन इत्यादी देश बुलंदियों को छू रहे हैं और हम हैं कि समूर्ण भारत को एकता के एक सूत्र में पिरोने के लिये हिन्दी को सर्व समाज कि भाषा मानने के बजाय विभिन्न भाषाओँ के साथ इसका सामंजस्य बैठने की कोशिश कर रहे हैं. अपने कुछ एक प्रश्नों पर आप सबके विचार जानना चाहूँगा कि..................१.हिन्दी पैसा बनाने का माध्यम है लेकिन आम जनसंपर्क का माध्यम क्यों नहीं ?
२. जब इसे राष्ट्र भाषा घोषित किया गया है तो फिर सम्पूर्ण राष्ट्र के लिये एक अनिवार्य भाषा क्यों नहीं ?
३. राष्ट्र भाषा के नाम पर ओछिं राजनीति क्यों और फिर ऐसा करने वालों के विरुद्ध सख्त कानून क्यों नहीं?
सीधे तौर पर यह बात कहने से परहेज करता हूँ कि हिन्दी का विकास नहीं हुआ या फिर इसका विकास नहीं हो रहा लेकिन जब यथोचित विकास की बात करें तो फिर इसे सहर्ष स्वीकार करना होगा की इसे वो स्थान अबतक नहीं मिल सका है जो इसे मिलना चाहिए. बातें अभी और भी हैं लेकिन आज के लिये बस इतना ही.
(सभी फोटोग्राफ्स गूगल सर्च इंजन से साभार)
धन्यवाद"
Sunday, September 5, 2010
"शुभकामनायें और कुछ और भी"
आज कुछ लिखने की शुरुआत करने से पहले सभी शिक्षकों को इस दिवस की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं. सबसे पहले तो डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन सरीखे लोगों के लिये लिखी अपनी ये पंक्तियाँ लिखता चलूँ कि..............
कल भी कुछ कर गये थे वे , वे अब भी कुछ कर जाते हैं
कल काम से कुछ कर गये थे वे अब नाम से कुछ कर जाते हैं.
किसी पोस्ट के माध्यम से तो नहीं लेकिन मुझे ऐसा लगा की अशोक चक्रधर जी का सीधा -साधा पात्र चकरू नई शिक्षा व्यवस्था को देखकर भी जरुर चकरा जाता होगा. इस बार चकरू की परेशानियों को मैंने कुछ ऐसे सामने लाने का प्रयास किया है.................
क्यों न चकरू चकराए चक्रधर भाई
नई शिक्षा व्यवस्था में है नई बीमारी आई
है नई बीमारी आई दीखते सब पीड़ित हैं भाई
कही छात्र लिये बैठे सिगार और कही गुरु कर रहे पढाई
चकरू चतुर हैं रहे नहीं, न चिकनी बात कभी है बनाई
दुनियादारी और छल कपट इनको नहीं सुहाई
है इनको नहीं सुहाई अतः बात सीधे है बताई
दोनों मिलकर दे सकते जग को नव ऊर्जा और तरुणाई
कहें हर्ष सहर्ष सुनें सब गुरुजन, प्रियजन और भाई
गुरु रहेगा गुरु, शिष्य-शिष्य रह जाई
अपनी-अपनी सीमा की पहचान जो इनको आई.
समय और वातावरण से तो ताल्लुक नहीं रखती लेकिन आज की लिखी हुई अपनी कुछ एक और पंक्तियाँ भी आज यहाँ लिखता चलूँ..................
भरे पेट अपना चाहे जैसे भी हो
पता न चलता रोग कहाँ और कैसी ये लाचारी है,
दो समय की रोटी जुटा हीं पाना लक्ष्य यदि है जीवन का
तो फिर सच है की पशुओं का जीवन भी हमपे भारी है .
भारत और भारतीय सोच को दर्शाती ये पंक्तियाँ भी कि...........
बसा जो हो अपना घर तो हर घर न्यारा लगता है
प्यार जो हो अपने दिल में तो हर दिल प्यारा लगता है,
कुछ ऐसी हीं खास बात है हम भारत वासी लोगों में
दुश्मन चाहे लाख सताए हमको प्यारा लगता है.
अंततः एक बार फिर से शिक्षक दिवस की ढ़ेर सारी शुभकामनायें. शिक्षक दिवस और हाल में ख़त्म हुए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से सम्बंधित फोटोग्राफ्स के लिये इंतजार कीजिये अगली पोस्ट का क्योंकि अभी पोस्ट कर पाना संभव नहीं हो पा रहा. आज के लिये बस इतना ही............
धन्यवाद"
कल भी कुछ कर गये थे वे , वे अब भी कुछ कर जाते हैं
कल काम से कुछ कर गये थे वे अब नाम से कुछ कर जाते हैं.
किसी पोस्ट के माध्यम से तो नहीं लेकिन मुझे ऐसा लगा की अशोक चक्रधर जी का सीधा -साधा पात्र चकरू नई शिक्षा व्यवस्था को देखकर भी जरुर चकरा जाता होगा. इस बार चकरू की परेशानियों को मैंने कुछ ऐसे सामने लाने का प्रयास किया है.................
क्यों न चकरू चकराए चक्रधर भाई
नई शिक्षा व्यवस्था में है नई बीमारी आई
है नई बीमारी आई दीखते सब पीड़ित हैं भाई
कही छात्र लिये बैठे सिगार और कही गुरु कर रहे पढाई
चकरू चतुर हैं रहे नहीं, न चिकनी बात कभी है बनाई
दुनियादारी और छल कपट इनको नहीं सुहाई
है इनको नहीं सुहाई अतः बात सीधे है बताई
दोनों मिलकर दे सकते जग को नव ऊर्जा और तरुणाई
कहें हर्ष सहर्ष सुनें सब गुरुजन, प्रियजन और भाई
गुरु रहेगा गुरु, शिष्य-शिष्य रह जाई
अपनी-अपनी सीमा की पहचान जो इनको आई.
समय और वातावरण से तो ताल्लुक नहीं रखती लेकिन आज की लिखी हुई अपनी कुछ एक और पंक्तियाँ भी आज यहाँ लिखता चलूँ..................
भरे पेट अपना चाहे जैसे भी हो
पता न चलता रोग कहाँ और कैसी ये लाचारी है,
दो समय की रोटी जुटा हीं पाना लक्ष्य यदि है जीवन का
तो फिर सच है की पशुओं का जीवन भी हमपे भारी है .
भारत और भारतीय सोच को दर्शाती ये पंक्तियाँ भी कि...........
बसा जो हो अपना घर तो हर घर न्यारा लगता है
प्यार जो हो अपने दिल में तो हर दिल प्यारा लगता है,
कुछ ऐसी हीं खास बात है हम भारत वासी लोगों में
दुश्मन चाहे लाख सताए हमको प्यारा लगता है.
अंततः एक बार फिर से शिक्षक दिवस की ढ़ेर सारी शुभकामनायें. शिक्षक दिवस और हाल में ख़त्म हुए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से सम्बंधित फोटोग्राफ्स के लिये इंतजार कीजिये अगली पोस्ट का क्योंकि अभी पोस्ट कर पाना संभव नहीं हो पा रहा. आज के लिये बस इतना ही............
धन्यवाद"
Sunday, August 15, 2010
शुभकामनायें: पर अतुल्य भारत के सपने का क्या होगा?
आज सबसे पहले समस्त भारतवासियों को ६4वे स्वतंत्रता दिवस की ढ़ेर सारी शुभकामनायें. न ज्यादा कुछ कहने को है और न ही ज्यादा कुछ समझाने को.मेरी समझ से इस इंटरनेट के मायानगरी से जुड़े हुए सभी लोग देश की वस्तुस्थिति से पूर्णतया वाकिफ हैं. लम्बी लाफ्फेबाजियों से बचते हुए आप सब से यही कहना चाहूँगा की अतुल्य भारत का जो सपना हमने देखा है,वो किसी व्यक्ति विशेष के कार्यों से साकार नहीं किया जा सकता. इसके लिये प्रत्येक भारतीय को अपने स्तर से योगदान करना होगा,कथनी और करनी के अंतर को मिटाना होगा. मेरी चाहत है कि "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा ", वाक्य अपने वास्तविक अर्थों को प्राप्त कर सके. अंततः आप सब से अनुरोध है कि अपनी जिम्मेदारियों को इमानदारी पूर्वक निभाते हुए देश के सर्वांगीण विकास के लिये काम करते रहें ताकि अपना अतुल्य भारत का सपना साकार हो सके अन्यथा ये सपना बस सपना बनकर ही रह जायेगा.
धन्यवाद"
धन्यवाद"
Monday, July 26, 2010
"लौट आया हूँ फिर से उसी दिनचर्या में"
जब परीक्षाएँ ख़त्म हुईं तो लगा की चलो काम से काम कुछ दिन के लिये इस दिनचार्य से मुक्ति तो मिली लेकिन छुट्टियाँ जाने कैसे बीत गईं और हम लोग फिर से उसी दिनचर्या में लौट भी आए. वैसे ऐसा पहली बार नहीं हुआ है थोड़े दिन की छुट्टियों के बाद फिर से छात्रावासीय दिनचर्या में लौट आने का ये सिलसिला पिछले ग्यारह सालों से चलता आ रहा है. इन पंक्तियों के माध्यम से मैंने कुछ ऐसा ही कहने के प्रयास किया है..........
फिर से लौट आया हूँ उसी दिनचर्या में
पिछली ग्यारह सालों से रहता आया हूँ जिसमे
हाँ सच है कि कुछ परिवर्तन भी होते रहे हैं इसमे
पर एक लक्ष्य और एक ध्येय से बढ़ता रहा इन वर्षों में.
यह सच है कि थोड़े दिन इस दिनचर्या से दूर हो फिर उसी में आ जाने का सिलसिला कई वर्षों से चलता आ रहा है लेकिन पहली बार इससे दूर हो जाने की सोचकर कुछ अजीब सा महसूस कर रहा हूँ. इसे कुछ इन शब्दों में व्यक्त करने का प्रयाश किया है..........
मम्मी पापा के छाया में
दीये के मद्धम लौ के नीचे
बैठ के भाई बहनों संग
लक्ष्य के कुछ सीमा थे खींचे.
कल का भी लक्ष्य वही होगा
बातें भी कुछ सोची सी होंगी
पर दूर होकर इस दिनचर्या से
कल कि दिनचर्या जाने क्या होगी.
वैसे कल पर तो अपना वश नहीं, आज को जी लेते हैं कल देखेंगे क्या होता है????????????
धन्यवाद"
फिर से लौट आया हूँ उसी दिनचर्या में
पिछली ग्यारह सालों से रहता आया हूँ जिसमे
हाँ सच है कि कुछ परिवर्तन भी होते रहे हैं इसमे
पर एक लक्ष्य और एक ध्येय से बढ़ता रहा इन वर्षों में.
यह सच है कि थोड़े दिन इस दिनचर्या से दूर हो फिर उसी में आ जाने का सिलसिला कई वर्षों से चलता आ रहा है लेकिन पहली बार इससे दूर हो जाने की सोचकर कुछ अजीब सा महसूस कर रहा हूँ. इसे कुछ इन शब्दों में व्यक्त करने का प्रयाश किया है..........
मम्मी पापा के छाया में
दीये के मद्धम लौ के नीचे
बैठ के भाई बहनों संग
लक्ष्य के कुछ सीमा थे खींचे.
कल का भी लक्ष्य वही होगा
बातें भी कुछ सोची सी होंगी
पर दूर होकर इस दिनचर्या से
कल कि दिनचर्या जाने क्या होगी.
वैसे कल पर तो अपना वश नहीं, आज को जी लेते हैं कल देखेंगे क्या होता है????????????
धन्यवाद"
Monday, June 7, 2010
"विश्व पर्यावरण दिवस: छोड़ दी राजनीति मैने तेरे लिये"
पर्यावरण और पर्यावरण दिवस पर बातें और भाषणबाजियां तो बहुत हो चुकी,अब समय है कुछ करने का और यह एक ऐसा मुद्दा है जहाँ हम अपनी गलतियों को दूसरों पर थोपकर आगे नहीं बढ़ सकते. तो फिर इंतजार किस बात की.किस एक धक्के का इंतजार है जो सबकुछ बदलने के लिये आवश्यक है उठिए जागिये और शुरू हो जाइये आज से.अभी से एक बेहतर भविष्य के निर्माण के लिये. न कुछ बताने की ज़रूरत है और न ही समझाने की. बस तीन R, Reduce,Reuse और Recycle के concept को ध्यान में रखते हुए, ईमानदारी पूर्वक अपना काम करते हुए बढ़ते जाइये पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण के मुहिम के इस अन्नंत यात्रा की तरफ.
कल दिन भर हुए क्रिया कलापों से कुछ बातें भी शेयर करता चलूँ. कल सुबह अपने कुछ दोस्तों के साथ ऊँची ऊँची इमारतों और शहर के हो हल्ले से दूर खेतों की पगडंडियों पर चलकर और किसानों से बात कर बिताया. वहाँ से लौटने के बाद जो शांति महसूस हो रही थी उसके बारे में आपको क्या बताऊँ? बस यूँ समझ लीजिये की यह मेरे अबतक के सबसे अच्छी सुबहों में से एक थी.
चुकीं हाल ही में परीक्षाएँ समाप्त हुई हैं इसलिए वहाँ से लौटने के बाद का समय दैनिक कार्यों को पूरा करने और पत्र पत्रिकाओं को पढ़ने में बिताया.लगभग तीन बजे से कॉलेज कैम्पस में ही शुरू हुए सेमिनार में शहर के गणमान्य लोगों, विद्वानों और उद्योग जगत से जुड़ी बड़ी हस्तियों को सुनने और उनके बीच कुछ बोलने का मौका मिला. सबकी बातों को सुनकर मैंने जो निष्कर्ष निकला उसे मैंने पोस्ट में सबसे ऊपर स्थान दिया है क्योंकि कुछ लोगों को कम्मेंट करने कि इतनी जल्दी रहती है कि वो पूरा पोस्ट पढना मुनासिब नहीं समझते और फिर मुझे आप सबके सामने अपनी बात भी तो रख देनी थी????????????
सेमिनार में अपने द्वारा लिखी कुछ पंक्तियों को सुनाकर मैंने वाहवाही भी बटोरी जो यहाँ आपके लिये भी प्रस्तुत है................
कुछ खोकर कुछ पा लेने की स्थिति कहाँ तक अच्छी है
कुछ पाकर पाते जाने की कोई बात करो तब तो जाने.
उपरोक्त पंक्ति लोगों के इस बात को ध्यान में रखकर लिखी गई हैं कि यदि विकास होगा तो पर्यावरण प्रदुषण भी बढेगा. कुछ हद तक यह बात सही भी है लेकिन हमें कुछ ऐसा करने कि ज़रूरत है जिससे विकास भी हो और प्रदुषण भी न हो.
हम उम्मीद करते हैं
बढ़ते तापमान के साथ कल्पना के उड़ान की
प्रदूषित जल के साथ एक स्वस्थ मस्तिष्क की
प्रदूषित हवा के साथ एक स्वस्थ शरीर की
प्रदूषित मृदा से उत्तरोत्तर उत्पादन की
संभव नहीं है यह तबतक जबतक
हम जग नहीं जाते अपने दिवा स्वप्न से.
विदेशी तकनीकि और पैसों पर निर्भर न रहने और अपने यहाँ मौजूद संसाधनों से ही स्वदेशी तकनीक विकशित करने के उद्देश्य से मैंने कुछ ऐसा लिखा.................
किसी मजार का दीया क्या कर सकेगा
कोई उधर का दीया कबतक रहेगा
मेरा दीया जो साथ है मेरे निरंतर
मेरे तीमीर को बस वही ही हर सकेगा.
कुछ तो अपने और कुछ भारतीय और विदेशी परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए मैंने अपनी ये पंक्ति भी सुनाई.................
दुनिया तेरी हर चाल से वाकिफ होता हूँ
तू कही षणयंत्र बनती और मै कही चैन से सोता हूँ
अपने शब्दों में जब भी तुमने मात दिया है मुझको
मेरा भोलापन शायद तब छू न पाया तुझको.
बहुत ज्यादा दिन का अनुभव नहीं रखता हूँ फिर मुझे कल और आज में भी बहुत अंतर दिखाई पड़ता है जिसे मैंने इन पंक्तियों में सहेजा है....................
ऐ प्रकृति के कोमल कृति देखा था तुमको बसा हुआ.
आज तुम्हे तुम्हारा इस दशा को
ईश्वरकृत न्यायिक दंश कहूँ
या मानव कृत विध्वंश कहूँ
पर जो भी कहूँ यह सत्य कहूँ की
देखा था कभी हरियाली तुममे
तेरा बाहू पाश था कसा हुआ
ऐ प्रकृति के कोमल कृति देखा था तुमको बसा हुआ.
पर्यावरण प्रदुषण नियंत्रण के लिये मै भी कुछ प्रोजेक्ट्स पे काम कर रहा हूँ वे जैसे ही पूरा होंगे उनकी जानकारी और उससे जुड़े अपने अनुभव ब्लॉग के माध्यम से आप सब तक पहुंचाउंगा.अब तक आप पोस्ट के शीर्षक और पोस्ट के बीच सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे होंगे. चलते चलते ये बताता चलूँ की कल मै हाल ही में रिलीज मूवी राजनीति देखने जाने वाला था. टिकट भी ले लिया गया था. लेकिन मैंने पर्यावरण से सम्बंधित कुछ जानकारी लेना और अपने विचारों को सबके सामने रखने की बात को श्रेयस्कर समझा मूवी देखने का प्लान कैंसिल कर दीया जो कि उपरोक्त शीर्षक का कारण बना.
धन्यवाद"
कल दिन भर हुए क्रिया कलापों से कुछ बातें भी शेयर करता चलूँ. कल सुबह अपने कुछ दोस्तों के साथ ऊँची ऊँची इमारतों और शहर के हो हल्ले से दूर खेतों की पगडंडियों पर चलकर और किसानों से बात कर बिताया. वहाँ से लौटने के बाद जो शांति महसूस हो रही थी उसके बारे में आपको क्या बताऊँ? बस यूँ समझ लीजिये की यह मेरे अबतक के सबसे अच्छी सुबहों में से एक थी.
चुकीं हाल ही में परीक्षाएँ समाप्त हुई हैं इसलिए वहाँ से लौटने के बाद का समय दैनिक कार्यों को पूरा करने और पत्र पत्रिकाओं को पढ़ने में बिताया.लगभग तीन बजे से कॉलेज कैम्पस में ही शुरू हुए सेमिनार में शहर के गणमान्य लोगों, विद्वानों और उद्योग जगत से जुड़ी बड़ी हस्तियों को सुनने और उनके बीच कुछ बोलने का मौका मिला. सबकी बातों को सुनकर मैंने जो निष्कर्ष निकला उसे मैंने पोस्ट में सबसे ऊपर स्थान दिया है क्योंकि कुछ लोगों को कम्मेंट करने कि इतनी जल्दी रहती है कि वो पूरा पोस्ट पढना मुनासिब नहीं समझते और फिर मुझे आप सबके सामने अपनी बात भी तो रख देनी थी????????????
सेमिनार में अपने द्वारा लिखी कुछ पंक्तियों को सुनाकर मैंने वाहवाही भी बटोरी जो यहाँ आपके लिये भी प्रस्तुत है................
कुछ खोकर कुछ पा लेने की स्थिति कहाँ तक अच्छी है
कुछ पाकर पाते जाने की कोई बात करो तब तो जाने.
उपरोक्त पंक्ति लोगों के इस बात को ध्यान में रखकर लिखी गई हैं कि यदि विकास होगा तो पर्यावरण प्रदुषण भी बढेगा. कुछ हद तक यह बात सही भी है लेकिन हमें कुछ ऐसा करने कि ज़रूरत है जिससे विकास भी हो और प्रदुषण भी न हो.
हम उम्मीद करते हैं
बढ़ते तापमान के साथ कल्पना के उड़ान की
प्रदूषित जल के साथ एक स्वस्थ मस्तिष्क की
प्रदूषित हवा के साथ एक स्वस्थ शरीर की
प्रदूषित मृदा से उत्तरोत्तर उत्पादन की
संभव नहीं है यह तबतक जबतक
हम जग नहीं जाते अपने दिवा स्वप्न से.
विदेशी तकनीकि और पैसों पर निर्भर न रहने और अपने यहाँ मौजूद संसाधनों से ही स्वदेशी तकनीक विकशित करने के उद्देश्य से मैंने कुछ ऐसा लिखा.................
किसी मजार का दीया क्या कर सकेगा
कोई उधर का दीया कबतक रहेगा
मेरा दीया जो साथ है मेरे निरंतर
मेरे तीमीर को बस वही ही हर सकेगा.
कुछ तो अपने और कुछ भारतीय और विदेशी परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए मैंने अपनी ये पंक्ति भी सुनाई.................
दुनिया तेरी हर चाल से वाकिफ होता हूँ
तू कही षणयंत्र बनती और मै कही चैन से सोता हूँ
अपने शब्दों में जब भी तुमने मात दिया है मुझको
मेरा भोलापन शायद तब छू न पाया तुझको.
बहुत ज्यादा दिन का अनुभव नहीं रखता हूँ फिर मुझे कल और आज में भी बहुत अंतर दिखाई पड़ता है जिसे मैंने इन पंक्तियों में सहेजा है....................
ऐ प्रकृति के कोमल कृति देखा था तुमको बसा हुआ.
आज तुम्हे तुम्हारा इस दशा को
ईश्वरकृत न्यायिक दंश कहूँ
या मानव कृत विध्वंश कहूँ
पर जो भी कहूँ यह सत्य कहूँ की
देखा था कभी हरियाली तुममे
तेरा बाहू पाश था कसा हुआ
ऐ प्रकृति के कोमल कृति देखा था तुमको बसा हुआ.
पर्यावरण प्रदुषण नियंत्रण के लिये मै भी कुछ प्रोजेक्ट्स पे काम कर रहा हूँ वे जैसे ही पूरा होंगे उनकी जानकारी और उससे जुड़े अपने अनुभव ब्लॉग के माध्यम से आप सब तक पहुंचाउंगा.अब तक आप पोस्ट के शीर्षक और पोस्ट के बीच सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे होंगे. चलते चलते ये बताता चलूँ की कल मै हाल ही में रिलीज मूवी राजनीति देखने जाने वाला था. टिकट भी ले लिया गया था. लेकिन मैंने पर्यावरण से सम्बंधित कुछ जानकारी लेना और अपने विचारों को सबके सामने रखने की बात को श्रेयस्कर समझा मूवी देखने का प्लान कैंसिल कर दीया जो कि उपरोक्त शीर्षक का कारण बना.
धन्यवाद"
Tuesday, June 1, 2010
"हम किस गली जा रहे हैं"
सच कहिये तो ब्लॉग जगत में छुट्टियों का लेखक और पाठक हूँ. कल परीक्षाएँ समाप्त हुईं तो आज कुछ नया पढ़ने और लिखने के लिये ब्लॉग जगत में उपस्थित हों गया. पिछले दिनों ढ़ेर सारी बातें जो आपतक पहुँचाने का मन बनाया लेकिन मन में ही दबाकर रख लिया. खैर कोई बात नहीं आज उन सबको समेटे यहाँ उपस्थित हों गया हूँ .
संचार के विभिन्न माध्यमों से मुझ तक पहुँचने वाली बातों में से कुछ बातें जो कि मुझे अक्सर परेशान करती हैं या फिर कुछ बातें जिनपर मै अपना स्पष्ट विचार नहीं दे पाता उनपर आज आप सबके विचार जानना चाहूँगा की क्या ये बातें आप सबको नहीं शालती? या फिर क्या आप इन्हें लेकर निरुत्तर से नहीं हों जाते?????
बातें तो वैसे बहुत सारी हैं, लेकिन दस प्रमुख बातें जो आज कल भी चर्चा के विषय हैं वे हैं............
१. एक राजनेता/राजनेत्री जो कि अपने आप को जनता का सेवक/सेविका और भी न जाने क्या-क्या बताते/बताती हैं के पास ८७ करोड़ तक की प्रापर्टी कहा से आ जाती? क्या उन्हें उनके जीविकोपार्जन के लिये इतने पैसे मिलते हैं की वे उसमे से इतना बचा पाते हैं???????
या फिर उनके आय का स्रोत व्यवसाय है???????
यदि व्यवसाय उनके आय का स्रोत है तो फिर राजनीति के क्षेत्र में रहकर वे देश सेवा के बजाय व्यवसाय कर रहे हैं या फिर यूँ कहें कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का हिस्सा होकर भी वे अपना शत प्रतिशत इसे नहीं दे रहे?
२. एक नेता जो पिछले ६ सालों में ६ बार इस्तीफा दे चुका जनता उसपर विश्वास कैसे कर लेती है?
३. कल तक वोट बैंक की राजनीति करने वाले जो लोग एक ऐसे संगठन का सपोर्ट कर रहे थे जो कि आज एक आतंकी संगठन घोषित हो चुका है, तो फिर सरकार उनपर देश द्रोह का मुकदमा चलाकर उन्हें जेल में क्यों नहीं डालती?
या फिर उन्हें फाँसी देने कि बात क्यों नहीं की जाती?
४. जिस एक आतंकी को पकड़ने के लिये कई वीर भारतीय सपूतों ने अपना खून बहाया उसे फाँसी देने के नाम पर राजनीती क्यों की जाती है?
क्या अपने बेटे की जान लेने वाले या फिर अपना खून बहाने वाले के साथ ये लोग ऐसा ही व्यवहार करेंगे??????????
५. यदि कहीं कोई आतंकी विस्फोट हो गया तो फिर उसमें किसी मंत्री का क्या दोष, फिर उसे इस्तीफा देने की सलाह क्या सोचकर दे दी जाती है????????
ऐसी मांग करने वाले क्या खुद ही उस जगह होने पर इस बात का दावा कर सकते हैं की वे वैसा नहीं होने देते?
६. प्रतिदिन पार्टी और विचारधारा बदलने वालों को जनता सबक क्यों नहीं सिखाती????????
इसे रोकने के लिये सख्त कानून क्यों नहीं बनाये जाते????????
७. आरक्षण देकर सरकार क्या एक खास वर्ग या समुदाय को सीधे तौर पर छोटा दिखने का प्रयास नहीं कर रही?
कुछ ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं की जा सकती की वे खुद ही वहाँ तक पहुचने को तत्पर हों जाएँ????
आरक्षण की समय सीमा क्या होगी????????
क्या कोई सरकार इसे ख़त्म करने को हिम्मत जुटा पायेगी?????????????
यदि नहीं तो फिर हम भविष्य के लिये परेशानियाँ क्यों पाल रहे हैं??????????
आरक्षण की मांग को लेकर जब लोग इस कदर उतारू हैं तो फिर लागू करने से पहले इसे ख़त्म करने के वक्त की स्थिति के बारे में भी तो सोच लें.और फिर यदि आप ये सोचते हैं कि पिछड़ेपन की स्थिति हमेशा बनी रहेगी तो इसका मतलब की आप अपनी नीतियों को सही मायने में लागू करने में नाकाम रहने के बारे में पहले से ही आश्वस्त हैं.
८.नक्सलवाद की समस्या लगातार बढती जा रही है, क्या इसके लिये हमारी गलत नीतियाँ जिम्मेदार नहीं हैं?????????
और यदि हाँ तो फिर ७-८ साल के कार्यकाल को छोड़कर शेष समय सत्ता में रहने वाली कांग्रेस सरकार इसके लिये किसे जिम्मेदार ठहरायेगी????????
९.जातिगत जनगणना क्या हमारे बीच फूट डालने की एक सोची समझी साजिश नहीं है?????????
यदि नहीं तो फिर ऐसा कर के सरकार क्या हासिल कर लेना चाहती है??????????
जातिगत राजनीति या फिर कुछ और?????????
१०. आज से महज पाँच साल पहले की बात है कि अटल बिहारी वाजपेयी जी को सुनने के लिये मैंने मई के महीने में तीन घंटे तक धूप में खड़ा रहा लेकिन आज स्थिति ये है कि कुछ एक को छोड़ दें तो सुनने जाना भी पसंद न करूँगा,ऐसी स्थिति के लिये जिम्मेदार कौन है ???????????
राजनीति और राजनितिक बातों से ज्यादा ताल्लुक नहीं रखता लेकिन आज की पोस्ट तो पूरी राजनितिक हो गई. खैर मेरी अंतराभिव्यक्ति जो थी जैसे भी थी वो अब आपके सामने है. कहिये आप क्या कहना चाहेंगे ????????????????????
धन्यवाद!!!
संचार के विभिन्न माध्यमों से मुझ तक पहुँचने वाली बातों में से कुछ बातें जो कि मुझे अक्सर परेशान करती हैं या फिर कुछ बातें जिनपर मै अपना स्पष्ट विचार नहीं दे पाता उनपर आज आप सबके विचार जानना चाहूँगा की क्या ये बातें आप सबको नहीं शालती? या फिर क्या आप इन्हें लेकर निरुत्तर से नहीं हों जाते?????
बातें तो वैसे बहुत सारी हैं, लेकिन दस प्रमुख बातें जो आज कल भी चर्चा के विषय हैं वे हैं............
१. एक राजनेता/राजनेत्री जो कि अपने आप को जनता का सेवक/सेविका और भी न जाने क्या-क्या बताते/बताती हैं के पास ८७ करोड़ तक की प्रापर्टी कहा से आ जाती? क्या उन्हें उनके जीविकोपार्जन के लिये इतने पैसे मिलते हैं की वे उसमे से इतना बचा पाते हैं???????
या फिर उनके आय का स्रोत व्यवसाय है???????
यदि व्यवसाय उनके आय का स्रोत है तो फिर राजनीति के क्षेत्र में रहकर वे देश सेवा के बजाय व्यवसाय कर रहे हैं या फिर यूँ कहें कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का हिस्सा होकर भी वे अपना शत प्रतिशत इसे नहीं दे रहे?
२. एक नेता जो पिछले ६ सालों में ६ बार इस्तीफा दे चुका जनता उसपर विश्वास कैसे कर लेती है?
३. कल तक वोट बैंक की राजनीति करने वाले जो लोग एक ऐसे संगठन का सपोर्ट कर रहे थे जो कि आज एक आतंकी संगठन घोषित हो चुका है, तो फिर सरकार उनपर देश द्रोह का मुकदमा चलाकर उन्हें जेल में क्यों नहीं डालती?
या फिर उन्हें फाँसी देने कि बात क्यों नहीं की जाती?
४. जिस एक आतंकी को पकड़ने के लिये कई वीर भारतीय सपूतों ने अपना खून बहाया उसे फाँसी देने के नाम पर राजनीती क्यों की जाती है?
क्या अपने बेटे की जान लेने वाले या फिर अपना खून बहाने वाले के साथ ये लोग ऐसा ही व्यवहार करेंगे??????????
५. यदि कहीं कोई आतंकी विस्फोट हो गया तो फिर उसमें किसी मंत्री का क्या दोष, फिर उसे इस्तीफा देने की सलाह क्या सोचकर दे दी जाती है????????
ऐसी मांग करने वाले क्या खुद ही उस जगह होने पर इस बात का दावा कर सकते हैं की वे वैसा नहीं होने देते?
६. प्रतिदिन पार्टी और विचारधारा बदलने वालों को जनता सबक क्यों नहीं सिखाती????????
इसे रोकने के लिये सख्त कानून क्यों नहीं बनाये जाते????????
७. आरक्षण देकर सरकार क्या एक खास वर्ग या समुदाय को सीधे तौर पर छोटा दिखने का प्रयास नहीं कर रही?
कुछ ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं की जा सकती की वे खुद ही वहाँ तक पहुचने को तत्पर हों जाएँ????
आरक्षण की समय सीमा क्या होगी????????
क्या कोई सरकार इसे ख़त्म करने को हिम्मत जुटा पायेगी?????????????
यदि नहीं तो फिर हम भविष्य के लिये परेशानियाँ क्यों पाल रहे हैं??????????
आरक्षण की मांग को लेकर जब लोग इस कदर उतारू हैं तो फिर लागू करने से पहले इसे ख़त्म करने के वक्त की स्थिति के बारे में भी तो सोच लें.और फिर यदि आप ये सोचते हैं कि पिछड़ेपन की स्थिति हमेशा बनी रहेगी तो इसका मतलब की आप अपनी नीतियों को सही मायने में लागू करने में नाकाम रहने के बारे में पहले से ही आश्वस्त हैं.
८.नक्सलवाद की समस्या लगातार बढती जा रही है, क्या इसके लिये हमारी गलत नीतियाँ जिम्मेदार नहीं हैं?????????
और यदि हाँ तो फिर ७-८ साल के कार्यकाल को छोड़कर शेष समय सत्ता में रहने वाली कांग्रेस सरकार इसके लिये किसे जिम्मेदार ठहरायेगी????????
९.जातिगत जनगणना क्या हमारे बीच फूट डालने की एक सोची समझी साजिश नहीं है?????????
यदि नहीं तो फिर ऐसा कर के सरकार क्या हासिल कर लेना चाहती है??????????
जातिगत राजनीति या फिर कुछ और?????????
१०. आज से महज पाँच साल पहले की बात है कि अटल बिहारी वाजपेयी जी को सुनने के लिये मैंने मई के महीने में तीन घंटे तक धूप में खड़ा रहा लेकिन आज स्थिति ये है कि कुछ एक को छोड़ दें तो सुनने जाना भी पसंद न करूँगा,ऐसी स्थिति के लिये जिम्मेदार कौन है ???????????
राजनीति और राजनितिक बातों से ज्यादा ताल्लुक नहीं रखता लेकिन आज की पोस्ट तो पूरी राजनितिक हो गई. खैर मेरी अंतराभिव्यक्ति जो थी जैसे भी थी वो अब आपके सामने है. कहिये आप क्या कहना चाहेंगे ????????????????????
धन्यवाद!!!
Monday, May 3, 2010
"जाओ जाकर जीतो जग को"
पिछले दिनों चल रही परीक्षाओं ने यह सोचने का ज्यादा मौका ही नहीं दिया की पिछले दो साल से जिन लोगों की हमारे बीच उपस्थिति हमे बल देती थी,जब हम लोग कॉलेज कैम्पस में नए थे तब जिन लोगों ने हमें पग-पग पर चलना सिखया वो लोग अब कैम्पस में पहले की तरह नहीं मिलने वाले. झार-खंडात्मक संबंधों(झारखण्ड में चलने वाले राजनितिक सम्बन्ध) में विश्वास नहीं रखता और शायद यही कारण है कि आज-कल कुछ अटपटा सा महसूस कर रहा हूँ. ख़ुशी है कि संचार के विभिन्न माध्यम अब भी हमें जोड़े रख सकेंगे लेकिन फिर भी कुछ कमी सी है. खैर छोडिये ज्यादा भावुक होने की ज़रूरत नहीं. आज सबसे पहले उन सभी लोगों से कहता चलूँ कि:
ऐ मेरे अन्जान अपरिचीत जीवन पथ के
परिचीत साथी
मेरे दुःख के साथी
या फिर
मेरे कहकहों के सहयोगी
मै रहूँगा आजीवन
तुम्हारा आभारी
नहीं जानता हूँ कल को
परन्तु जानता हूँ कि
कल अलग हो जाने हैं रास्ते हमारे
शायद इतने दूर और इतने अलग की
फिर मिल न सके
लेकिन विश्वास दिलाता हूँ कि
याद रखूँगा तुम्हे
अपने उन बीते हुए लम्हों के साथ
और तुमसे भी उम्मीद रखूँगा
कुछ ऐसा हीं"
इस समय और मौसम से ताल्लुक रखने वाली अपनी ये पंक्तियाँ भी लिखता चलूँ ..............
"अबतक तुम कहा किये की हमको भूल न पाओगे
अब सुन लो तुम मेरी भी याद बहुत तुम आओगे."
"हाँ सफ़र में दूर जाने को कहेंगे
पर दिलों से दूर कैसे कर सकेंगे
दूर है मंजिल अभी लम्बा सफ़र है
शायद सफर में साथ फिर कभी रह सकेंगे"
परीक्षाएँ ख़त्म हुईं तो झटपट मूवी देखने का प्लान बना डाला और हाल ही में रिलीज हॉउस फुल देखने पहुँच गया. समय अच्छा कट गया और साथ ही यह सीख मिल गई की लगातार असफलताएँ आदमी को भले ही बंनौती बना दें,लेकिन इमानदारी ,सच और आगे बढ़ने की चाहत किसी न किसी रूप में किसी सैंडी से साक्षात्कार करवा जाएगी जो कि पूरे जीवन की दशा और दिशा बदल देगी. अपने सीनियर्स के लिये कहना चाहूँगा की यदि अबतक उन्हें किसी तरह की असफलता हाथ लगी हो तो परेशान न हों आने वाला कल सब ठीक कर देगा लेकिन आवश्यकता है: कड़ी मेहनत,दूर दृष्टि और सच्चे लगन की. सबके उज्जवल भविष्य के लिये ढ़ेर सारी शुभकामनाओं के साथ ही यह कहना चाहूँगा की आप जहाँ भी रहें विजेता बनकर रहें.
चलते-चलते एक चीर परिचीत पंक्ति भी याद दिलाता चलूँ......
"उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दें
न जाने किस गली में जिन्दगी की शाम हो जाए"
धन्यवाद"
ऐ मेरे अन्जान अपरिचीत जीवन पथ के
परिचीत साथी
मेरे दुःख के साथी
या फिर
मेरे कहकहों के सहयोगी
मै रहूँगा आजीवन
तुम्हारा आभारी
नहीं जानता हूँ कल को
परन्तु जानता हूँ कि
कल अलग हो जाने हैं रास्ते हमारे
शायद इतने दूर और इतने अलग की
फिर मिल न सके
लेकिन विश्वास दिलाता हूँ कि
याद रखूँगा तुम्हे
अपने उन बीते हुए लम्हों के साथ
और तुमसे भी उम्मीद रखूँगा
कुछ ऐसा हीं"
इस समय और मौसम से ताल्लुक रखने वाली अपनी ये पंक्तियाँ भी लिखता चलूँ ..............
"अबतक तुम कहा किये की हमको भूल न पाओगे
अब सुन लो तुम मेरी भी याद बहुत तुम आओगे."
"हाँ सफ़र में दूर जाने को कहेंगे
पर दिलों से दूर कैसे कर सकेंगे
दूर है मंजिल अभी लम्बा सफ़र है
शायद सफर में साथ फिर कभी रह सकेंगे"
परीक्षाएँ ख़त्म हुईं तो झटपट मूवी देखने का प्लान बना डाला और हाल ही में रिलीज हॉउस फुल देखने पहुँच गया. समय अच्छा कट गया और साथ ही यह सीख मिल गई की लगातार असफलताएँ आदमी को भले ही बंनौती बना दें,लेकिन इमानदारी ,सच और आगे बढ़ने की चाहत किसी न किसी रूप में किसी सैंडी से साक्षात्कार करवा जाएगी जो कि पूरे जीवन की दशा और दिशा बदल देगी. अपने सीनियर्स के लिये कहना चाहूँगा की यदि अबतक उन्हें किसी तरह की असफलता हाथ लगी हो तो परेशान न हों आने वाला कल सब ठीक कर देगा लेकिन आवश्यकता है: कड़ी मेहनत,दूर दृष्टि और सच्चे लगन की. सबके उज्जवल भविष्य के लिये ढ़ेर सारी शुभकामनाओं के साथ ही यह कहना चाहूँगा की आप जहाँ भी रहें विजेता बनकर रहें.
चलते-चलते एक चीर परिचीत पंक्ति भी याद दिलाता चलूँ......
"उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दें
न जाने किस गली में जिन्दगी की शाम हो जाए"
धन्यवाद"
Monday, April 12, 2010
"महाप्रयोग: क्या और कैसे?"
पिछले दिनों दैनिक-Stroke के नाम से प्रतिदिन
के खास समाचारों को कॉलेज के नोटिस बोर्ड पर लगाने कि एक अच्छी शुरुआत की गई. इसके लिये द्वितीय,तृतीय और चतुर्थ वर्ष के छात्रों को लेकर बनाई गई पाँच सदस्यीय टीम का एक सदस्य मै भी हूँ. पहले ही दिन पढ़ने वालों का काफी अच्छा support मिला. इस बीच कुछ लोगों ने सम्पादकीय पन्नों को हिंदी में देने का सुझाव दिया. सामान्यतः अंग्रेजी में मिलने वाली जानकारियों को हिंदी में लिखना, उसे अंग्रेजी में लिखने से थोड़ा ज्यादा मेहनत का काम था और फिर ऐसे में सप्ताह के सातों सम्पादकीय पन्ने हिंदी में देना संभव नही था.लेकिन जनता की मांग पर सप्ताह के दो सम्पादकीय हिंदी में देने का निर्णय लिया गया. दैनिक-Stroke के लिये मेरे द्वारा लिखे सम्पादकीय पन्नों में से कुछ एक को यहाँ भी पोस्ट करता रहूँगा. हिंदी का पहला सम्पादकीय पन्ना मैंने फिर से शुरू हुए महाप्रयोग पर The Hindu और BBC हिंदी से मिली जानकारियों के आधार पर तैयार किया जिसे आज यहाँ भी पोस्ट कर रहा हूँ..........................
सितम्बर २००८ में बंद हो गये Large Hadron Collider ने एक बार फिर से अपना काम करना शुरू कर दिया है. इतिहास के इस प्रयोग से काफी उम्मीदें हैं और विज्ञान के क्षेत्र में ढ़ेर सारी नई खोजों की उम्मीद भी की जा रही हैं.
क्या है ये?:
अबतक का सबसे बड़ा प्रयोग माने जाने वाले इस महाप्रयोग के लिये Switzerland और फ़्रांस की सीमा पर अरबों डॉलर लगाकर पिछले २० साल में दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला स्थापित की गई. प्रयोग के लिये बनाई गई मशीन जिसे हम Big Bang Machine के नाम से जानते हैं पर काम करने वाले वैज्ञानिक प्रोटॉन के कणों को एक साथ टकराने की कोशिश करेंगे जो इससे पहले कभी नहीं किया जा सका.वैज्ञानिको का मानना है कि इससे प्रकृति और ब्रम्हाण्ड के कुछ रोचक रहस्यों को खोलने में मदद मिलेगी की आखिर इसकी उत्पत्ति कैसे हुई.
कैसे होगा प्रयोग?:
European Centre for Nuclear Research(CE RN) पर लगभग ८० कुशल वैज्ञानिकों के समूह द्वारा किया जाने वाला यह प्रयोग पिछले साल शुरू हुआ था लेकिन तकनीकि खराबी के कारण इसे रोक दिया गया था. विशाल हेड्रन Collider में एटम्स को लगभग सात ख़राब एलेक्ट्रोन वोल्ट के टकराव के साथ शुरू होगा और ये १८ से २४ महीनों तक जारी रहेगा. इस पूरे महाप्रयोग के जरिये मिलने वाली जानकारी से पृथ्वी की उत्पत्ति की Big Bang theory को समझने में भी मदद मिलने की उम्मीद की जा रही है. इस प्रयोग के लिये प्रोटोनो को २७ किलोमीटर लम्बी गोलाकार सुरंगों में दो विपरीत दिशाओं में भेजा जायेगा और वैज्ञानिकों के अनुसार ये एक सेकेण्ड में ग्यारह हजार से भी अधिक परिक्रमा पूरी करेंगे. इस प्रक्रिया के दौरान कुछ विशेष स्थानों पर आपस में टकरायेंगे. अनुमान लगाया गया है कि इस दौरान प्रोटोन के टकराने कि लगभग ६० करोड़ से भी ज्यादा घटनाये होंगी जिन्हें दर्ज किया जायेगा. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस दौरान १०० मेगाबाईट से भी ज्यादा आंकड़े एकत्रित किये जा सकेंगे.वैज्ञानिकों ने यह सूचना भी दी है कि इस महाप्रयोग से हासिल होने वाले आंकड़ों के अध्ययन में समय लगेगा और लोगों को तुरंत नतीजे कि उम्मीद नही रखनी चाहिए. महाप्रयोग के प्रवक्ता गुइडो टोनेली ने इस सम्बन्ध में कहा की " मुख्य खोज उसी समय सामने आएगी जब हम अरबों घटनाओ को पहचाने और विशेष घटना नजर आए जो पदार्थ का नया आयाम पेश करे". उन्होंने BBC को बताया कि " यह कल ही नहीं होने वाला है इसके लिये महीनों और वर्षों के धैर्य पूर्ण काम की ज़रुरत है". धैर्य रखे और उम्मीद करें की वैज्ञानिकों का यह प्रयास सफल हो ताकि हमें ब्रम्हांड के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी मिल सके.
धन्यवाद"
Monday, March 22, 2010
"Technikon'10- संपन्न हुआ"
जैसा की पिछली पोस्ट में बता चुका हूँ इस कार्यक्रम की शुरुआत बहुत ही मनमोहक एवं जोश और उमंग से परिपूर्ण वातावरण में हुआ और अब ये बता दूँ कि इस मनमोहक शुरुआत की जबरदस्त समाप्ति भी हुई.पहली बार चार दिन तक चलने वाले और इतना सारे इवेंट्स को समेटे इस अनूठे कार्यक्रम का एक हिस्सा बनकर काफी ख़ुशी हुई. सारे इवेंट्स के बारे में बता पाना और इससे जुड़ी सभी यादों और अनुभवों को आप सबतक पहुंचा पाना थोड़ा मुश्किल काम है. फिर भी समयानुसार कुछ बातें आप तक पहुचाने का प्रयास करूँगा. आज इस Tech Fest कि कुछ फोटोग्राफ्स पोस्ट कर रहा हूँ. आप खुद ही देखिये और समझीये..........
technikon'10 के चार इवेंट में मैंने भी भाग लिया जिसमे से दो का विनर एक का रनर अप और एक में केवल अनुभव लेकर ही संतुष्ट हो लिया.
धन्यवाद"
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