

कल दिन भर हुए क्रिया कलापों से कुछ बातें भी शेयर करता चलूँ. कल सुबह अपने कुछ दोस्तों के साथ ऊँची ऊँची इमारतों और शहर के हो हल्ले से दूर खेतों की पगडंडियों पर चलकर और किसानों से बात कर बिताया. वहाँ से लौटने के बाद जो शांति महसूस हो रही थी उसके बारे में आपको क्या बताऊँ? बस यूँ समझ लीजिये की यह मेरे अबतक के सबसे अच्छी सुबहों में से एक थी.
चुकीं हाल ही में परीक्षाएँ समाप्त हुई हैं इसलिए वहाँ से लौटने के बाद का समय दैनिक कार्यों को पूरा करने और पत्र पत्रिकाओं को पढ़ने में बिताया.लगभग तीन बजे से कॉलेज कैम्पस में ही शुरू हुए सेमिनार में शहर के गणमान्य लोगों, विद्वानों और उद्योग जगत से जुड़ी बड़ी हस्तियों को सुनने और उनके बीच कुछ बोलने का मौका मिला. सबकी बातों को सुनकर मैंने जो निष्कर्ष निकला उसे मैंने पोस्ट में सबसे ऊपर स्थान दिया है क्योंकि कुछ लोगों को कम्मेंट करने कि इतनी जल्दी रहती है कि वो पूरा पोस्ट पढना मुनासिब नहीं समझते और फिर मुझे आप सबके सामने अपनी बात भी तो रख देनी थी????????????
सेमिनार में अपने द्वारा लिखी कुछ पंक्तियों को सुनाकर मैंने वाहवाही भी बटोरी जो यहाँ आपके लिये भी प्रस्तुत है................
कुछ खोकर कुछ पा लेने की स्थिति कहाँ तक अच्छी है
कुछ पाकर पाते जाने की कोई बात करो तब तो जाने.
उपरोक्त पंक्ति लोगों के इस बात को ध्यान में रखकर लिखी गई हैं कि यदि विकास होगा तो पर्यावरण प्रदुषण भी बढेगा. कुछ हद तक यह बात सही भी है लेकिन हमें कुछ ऐसा करने कि ज़रूरत है जिससे विकास भी हो और प्रदुषण भी न हो.
हम उम्मीद करते हैं
बढ़ते तापमान के साथ कल्पना के उड़ान की
प्रदूषित जल के साथ एक स्वस्थ मस्तिष्क की
प्रदूषित हवा के साथ एक स्वस्थ शरीर की
प्रदूषित मृदा से उत्तरोत्तर उत्पादन की
संभव नहीं है यह तबतक जबतक
हम जग नहीं जाते अपने दिवा स्वप्न से.

किसी मजार का दीया क्या कर सकेगा
कोई उधर का दीया कबतक रहेगा
मेरा दीया जो साथ है मेरे निरंतर
मेरे तीमीर को बस वही ही हर सकेगा.
कुछ तो अपने और कुछ भारतीय और विदेशी परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए मैंने अपनी ये पंक्ति भी सुनाई.................
दुनिया तेरी हर चाल से वाकिफ होता हूँ
तू कही षणयंत्र बनती और मै कही चैन से सोता हूँ
अपने शब्दों में जब भी तुमने मात दिया है मुझको
मेरा भोलापन शायद तब छू न पाया तुझको.
बहुत ज्यादा दिन का अनुभव नहीं रखता हूँ फिर मुझे कल और आज में भी बहुत अंतर दिखाई पड़ता है जिसे मैंने इन पंक्तियों में सहेजा है....................
ऐ प्रकृति के कोमल कृति देखा था तुमको बसा हुआ.
आज तुम्हे तुम्हारा इस दशा को
ईश्वरकृत न्यायिक दंश कहूँ
या मानव कृत विध्वंश कहूँ
पर जो भी कहूँ यह सत्य कहूँ की
देखा था कभी हरियाली तुममे
तेरा बाहू पाश था कसा हुआ
ऐ प्रकृति के कोमल कृति देखा था तुमको बसा हुआ.

धन्यवाद"
4 comments:
sahi kiya apne jo raajneeti chhod di, sabhi agar is tarah ki soch bana len to gloval barming ki samsya jald khtm ho jaayegi
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
nice
kuch khokar..........................what a great thinking it is? really, ultimate
कुछ खोकर कुछ पा लेने की स्थिति कहाँ तक अच्छी है
कुछ पाकर पाते जाने की कोई बात करो तब तो जाने.
Gagar me sagar bhar laye aap to.shubkamnayen.
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