Monday, July 26, 2010

"लौट आया हूँ फिर से उसी दिनचर्या में"

जब परीक्षाएँ ख़त्म हुईं तो लगा की चलो काम से काम कुछ दिन के लिये इस दिनचार्य से मुक्ति तो मिली लेकिन छुट्टियाँ जाने कैसे बीत गईं और हम लोग फिर से उसी दिनचर्या में लौट भी आए. वैसे ऐसा पहली बार नहीं हुआ है थोड़े दिन की छुट्टियों के बाद फिर से छात्रावासीय  दिनचर्या में लौट आने का ये सिलसिला पिछले ग्यारह सालों से चलता आ रहा है. इन पंक्तियों के माध्यम से मैंने कुछ ऐसा ही कहने के प्रयास किया है..........       


        
फिर से        लौट    आया हूँ     उसी       दिनचर्या में
पिछली ग्यारह     सालों   से   रहता  आया हूँ जिसमे
हाँ सच है कि कुछ परिवर्तन भी    होते रहे     हैं इसमे
पर एक लक्ष्य और एक ध्येय से बढ़ता रहा इन वर्षों में.
यह सच है कि थोड़े दिन इस दिनचर्या से दूर हो फिर उसी में आ जाने का सिलसिला कई वर्षों से चलता आ रहा है लेकिन पहली बार इससे दूर हो जाने की सोचकर  कुछ अजीब सा महसूस कर रहा हूँ. इसे कुछ इन शब्दों में व्यक्त करने का प्रयाश किया है..........
मम्मी पापा के छाया में
दीये के मद्धम लौ के नीचे
बैठ के भाई बहनों संग
लक्ष्य के कुछ सीमा थे खींचे.
             कल का भी लक्ष्य वही होगा
             बातें भी कुछ सोची  सी होंगी   
             पर दूर होकर इस दिनचर्या से
             कल कि दिनचर्या जाने क्या होगी.  
वैसे कल पर तो अपना वश नहीं, आज को जी लेते हैं कल देखेंगे क्या होता है????????????
धन्यवाद"    

2 comments:

sarvesh said...

Bahut khub likha hai tumane ye batao ki tumhare dimag me itne achhe kavita aa kaise jati hai....
BAHUT KHUB LIKHA HAI................!.

Anonymous said...

Good brief and this fill someone in on helped me alot in my college assignement. Gratefulness you as your information.