-आज तो साहब बैठे ही नहीं या फिर आज बहुत काम था इसलिए हो नहीं पाया.
कानपुर की गर्मी से दूर यहाँ का सदा एक सा बना रहने वाला तापमान यहाँ सबसे अच्छा लगा. साथ ही सफाई और पेड़ पौधों से सजा हरा-भरा शहर सुखद अनुभूति दे रहा है. आजकल आसमान में उमड़ते-घुमड़ते बादल प्रतिदिन थोड़ी वर्षा कर जाते है जो कि यहाँ के वातावरण को कुछ और ही खुशनुमा बना जाते हैं. आते जाते यह बात समझ आ गई है कि हिन्दी आते हुए भी कन्नड़ बोलना यहाँ के टैक्सी चालकों का पैसा बनाने का एक तरीका है. और यही वजह है की हम लोग अब टैक्सी करने से परहेज करने लगे हैं. करते भी हैं तो ऐसी जगह की जहाँ की दूरी और किराए की पूरी जानकारी है. यह सच है कि यहाँ कन्नड़ बोलने वाले बहुसंख्यक हैं परन्तु हिन्दी बोलने और समझने वालों की कमी भी नहीं है.अब सुबह ८.३० से शाम ४.३० तक के ट्रेनिंग के बाद ब्लॉगिंग के लिए अच्छा खासा समय मिल जाया करेगा. अतः शेष बातें अगली पोस्टों के माध्यम से पहुँचाता रहूँगा. आज के लिए बस इतना ही....
धन्यवाद"
2 comments:
खूब मजे करो। बधाई और शुभकामनाएँ।
बहुत अच्छी पोस्ट है।
किंतु भाषा की शुद्धता बहुत जरूरी है। इन शब्दों की वर्तनी सुधार लो :
चूका - चुका
सीधा सा उतर - उत्तर
पहलूवों - पहलुओं
बातचित - बातचीत
अविश्मरणीय - अविस्मरणीय
बैंगलोर - बंगलुरू
चालको - चालकों
पूरे दिन के भाग दौड़-पूरे दिन की भाग दौड़
बैंगलूर - बंगलुरू
कानपूर - कानपुर
जो की - जो कि
लगे है. करते भी है - लगे हैं. करते भी हैं
जहाँ के दूरी - जहाँ की दूरी
ब्लोगिंग - ब्लॉगिंग
Thanks for sharing this blog with us.
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