Saturday, August 27, 2011

बात जो पचती नहीं

 
ऐसी ढेर सारी बातें होती हैं जो नहीं पचती. लेकिन थोडा सामंजस्य के बाद या फिर यूँ कहें की थोडा दायें-बायें कर बातों को इस लायक बना लिया जाता है ताकि वे आसानी से पचाई जा सकें. पर इस बीच जो कुछ हुआ बड़े प्रयास के बाद भी पचने का नाम नहीं ले रहा. खैर स्थिति भी ऐसी आ गई है की अब ये सबकुछ सामंजस्य बिठाने के लायक समझ नहीं आता.
पिछले दिनों घटनाक्रम पर लगातार नजर बनाये हुए था. हो भी क्यों न राष्ट्र हित की बात जो थी. पिछले दिनों BBC पे पंकज प्रियदर्शी जी का ब्लॉग पढ़ा, The Hindu में अरुंधती रॉय का सम्पादकीय आलेख पढ़ा, साथ ही अन्य सभी समाचारपत्रों के सम्पादकीय पन्नो पर नजर दौड़ता रहा. सब कुछ देख समझ कर लगा की इस भ्रष्टाचार ने तो मीडिया की नियत भी ख़राब कर रखी है. कल तक अन्ना के आन्दोलन के साथ खड़ी मीडिया का रुख अचानक बदलने क्यों लगा है? यह बात सच है कि अच्छे और बुरे पहलु प्रत्येक बात के साथ जुड़े होते हैं लेकिन लेकिन अच्छा तो ये होता की राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे ही प्रकाश में आयें, फिजूल की बातों के लिए तो और भी समय है. आज जब पूरा देश भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगाये हुए है, कुछ कर गुजरने के सपने बुन रहा है आपका (मीडिया) यह व्यवहार आपकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है.
मैंने कुछ ऐसा लिखने का मन अनायास ही नहीं बनाया. पिछ्ले दिनों मैंने जो कुछ पढ़ा और देखा वो इसके लिए पर्याप्त था कि मै कुछ ऐसा लिखूं. तो फिर बात करते हैं उन बातों की जिन्हें पचा नहीं पा रहा हूँ.
-BBC में पंकज प्रियदर्शी जी लिखते हैं कि अन्ना के आन्दोलन के कुछ फायदे तो हैं पर इसका नुक्सान माध्यम वर्ग को उठाना पड़ेगा, बदलाव केवल विचार परिवर्तन के साथ हो सकता है न कि इस तरह के आन्दोलन से. यही नहीं ये तो माध्यम वर्ग को दिग्भ्रमित भी बताते है .
--मेरा कहना ये है कि आज सभी जाति धर्म संप्रदाय के लोग एक साथ आवाज उठाने को तैयार हैं क्या ये विचार परिवर्तन नहीं है. अभी कुछ दिनों पहले एक रैली का हिस्सा रहा. जाहिर सी बात है कि रैली के कारण ट्रैफिक रही  लेकिन किसी के चेहरे पर परेशानी जैसी कोई बात नहीं रही,उल्टे लोग गाड़ी रोकते हमारे स्वर से स्वर मिलाते और आगे बढ़ जाते कुछ और लोगों का उत्साह वर्धन करने के लिए. ट्रैफिक पुलिस मौन हो कर सब कुछ देख रही थी और और लोग व्यवस्था खुद बना रहे थे.मै बस ये कहना चाहता हूँ कि जिस विचार परिवर्तन कि आप बात कर रहे हैं उसके लिए आपके क्या सुझाव हैं? या फिर आप क्या कर सकते हैं?
--अरुंधती रॉय का मानना है कि यह यह आन्दोलन कुछ टॉप लेवल के लोगों द्वारा चलाया जा रहा है, इससे आम जनता को कोई फायदा नहीं हो सकता. वे अन्ना की मांगों को अलोकतांत्रिक भी बताती हैं.
-मै ये जानना चाहता हूँ कि Ground Level से जाकर क्या आप इस आन्दोलन के इतने सफल होने कि बात सोच सकती हैं? वैसे आपका भी तो एक लेवल है आप अपने विचारों से ऐसे कितने लोगों को प्रभावित कर सकती हैं? आप तो खुद भी कुछ सकारात्मक करने के बजाय अपने विवादस्पद बयानों के लिए सुर्ख़ियों में रही हैं. भ्रष्टाचार को ख़त्म करना है तो इसको खत्म करने की शुरुआत वही से करनी होगी जहाँ से ये पनप रहा है. पैसा देकर मनमाफिक जगह पर काम करने का अवसर पाने वाला अधिकारी वहाँ  जाकर पैसे बनाने कि क्यों न सोचेगा? आप संसद के गरिमा की बात करती हैं जबकि आपको ये भी पाता है की ये संसद और संसद हमने बनाये हैं और हमारी इच्छायें सर्वोपरि हैं.
--ऐसा लगा जैसे संपादकों को ऐसा निर्देश दिया गया हो की  कुछ ऐसा ही प्रकाशित करें जिससे इस आन्दोलन को कमजोर बनाया जा सके. या फिर कुछ अलग दिखने और करने के चक्कर में ये लोग राष्ट्र हित को हीं भूलने लगे.
 -इतना ही नहीं अवसरवादी राजनितिक पार्टियाँ भी बेनकाब हुईं. ये लोग कुछ भी बोल पाने कि स्थिति में नहीं दिखे. मुझे आश्चर्य था कि किसी ने इस आन्दोलन को उचाई तक पहुँचाने वाले लोगों के जाति,धर्म, या क्षेत्र के बारे में कोई टिपण्णी क्यों नहीं की? सो पिछ्ले दिनों समाचार पत्रों में ये भी पढ़ने को मिल गया.
-All india confederation of india के लोगों को अन्ना के किस बात से आपत्ति है ये बात तो सामने नहीं आई लेकिन विरोध  प्रदर्शन  की  फोटोग्राफ्स  देखने  को जरुर  मिलीं . ऐसा  कर के ये  लोग  भारतीय जनमानस  को क्या संदेश  देना  चाहते  हैं  ये  बात तो  समझ  से परे  है  लेकिन   लेकिन  कुछ  छुद्र  राजनीतिज्ञ  उनके सुर  में  सुर  मिलाने  से भी नहीं चुके.
- अन्ना को चुनाव जीतकर संसद में आने और फिर जनलोकपाल बिल को पास कराने की सलाह देने वाले सीधे-सीधे ये क्यों नहीं कहते वे लोग वहाँ रहते हुए कुछ नहीं कर सकते क्योंकि खुद भी भ्रष्ट हैं. सीधी बात करें तो जनता  भी समझे की कैसे-कैसे लोग वहाँ पहुँच जाते हैं.
-एक बूढ़े इमानदार आदमी को पिछ्ले ग्यारह दिनों से भूखे रखकर सरकार खुद को बचाने का प्रयास करती रही. ये लोग कुछ ऐसा क्यों नहीं करते की हमसे पर्याप्त  दूर रहने वाले आमेरिका को ये न बताना पड़े की हमारा पडोसी हमारी सीमाओं पर अत्याधुनिक मिसाइलें खड़ी कर रहा है.
-भगवान् बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बनी का विकाश चीन क्यों करा है? अपने पड़ोस के ही इस धार्मिक महत्व के स्थान के विकास की बात हमने अबतक क्यों नहीं सोची? चीन हमारे आस पास लगातार अपनी शक्तियाँ बढ़ा रहा है. उसकी मनसा भी जग जाहिर है. लेकिन हमारी सरकार अपने घर के कलह से बाहर निकले तब तो!
-पाकिस्तानी विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार जिस दिन भारतीय नेतावों के साथ वार्ता कर रही थी और भारतीय मिडिया उनके खुबशुरती के कसीदे गढ़ रहा था पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सीमा पर लगे तीन जवानो का सर काट कर अपने नापाक इरादों का परिचय दे दिया.
-जो कुछ आज हुआ आज से दस दिन पहले भी किया जा सकता था या फिर तभी जब अन्ना ने पहली बार जन लोकपाल को सामने रखा था. लेकिन ऐसा करने से तौहीन जो हो जाती? इन्हें तो अन्ना की शक्ति देखनी थी? तो अब सबकुछ दिख भी चुका.
-रामदेव के आन्दोलन की तरह अन्ना के आन्दोलन को भी दबाने में सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ा लेकिन ये तो भारतीय जनमानस था जो इस बार सही समय पर जग गया. सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले के खिलाफ आतंकियों का सा व्यवहार किया जा रहा है. काश ऐसा उन्ही लोगों (आतंकियों) के साथ होता तो ये सब कुछ देखने को नहीं मिलता. रामदेव और उनके सहयोगियों के खिलाफ तथ्य जुटाने में जितनी तत्परता दिखाई गई उतनी यदि आतंकवाद के खिलाफ दिखाते तो अबतक जेल में बंद कुछ रावणों से मुक्ति मिल गई होती.
-जन्लोक्पाल बिल का क्या हस्र होगा ये तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा लेकिन इसपर विचार करने का काम जिस स्थाई समीति को सौपा गया है उसके कुछ सदयों के मानसिकता और कार्यप्रणाली पर मुझे संदेह है. इसमें ऐसे कई चेहरे हैं जो कल संसद में अपने वोट बैंक बनाने के लिए अन्ना के समर्थन में तो दिखे लेकिन वास्तविक मुद्दों पर उदासीन ही रहे. संसद सदस्य बन जाने के बाद मनमानी को अपना अधिकार समझने वाले लोग सावधान रहें अगले चुनाव में जनता आपको वहाँ पहुँचाने जैसी कोई गलती नहीं करेगी.
-भारतीय जनमानस से एक अनुरोध करना चहुँगा की जैसे भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सबने एक साथ आवाज उठाई और अपनी बात मनवा लिया वैसे ही जाती,धर्म,संप्रदाय और क्षेत्रीयता के नाम पर राजनीति करने वालों को अगले चुनाव में करारा जवाब देकर एक और मिसाल कायम करे.
--जनमानस के आवाज को दबाने वालों को एक खुली चेतावनी है कि अबतक हम Reformation की बात करते रहे हैं, आप अपनी हदें पार न करें अन्यथा हम Recreation की सोचेंगे.

इस अलख को कुछ यूँ ही जलाये रखें
 बातें तो अभी और हैं होती हीं रहेगी |  
जय हिंद! जय भारत!








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